Chetna Borewell Rescue: राजस्थान की राजधानी जयपुर से सटे कोटपूतली में साढ़े तीन साल की बच्ची चेतना 23 दिसंबर को बोरवेल में गिर गई थी। हालांकि, चौथे दिन भी चेतना को बोरवेल से बाहर नहीं निकाला जा सका है। NDRF, SDRF, लोकल प्रशासन, और उत्तराखंड से बुलाई गई (Chetna Borewell Rescue )रेटमाइनर्स की टीम चेतना को बचाने में जुटी हुई है, लेकिन 72 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका है।
चेतना की स्थिति पर सवाल
बोरवेल में अब चेतना की किसी तरह की एक्टिविटी नहीं दिख रही है, जिससे चिंता और बढ़ गई है। रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी और असफलता को लेकर अब NDRF और SDRF की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
- आर्यन रेस्क्यू से सबक न लेना: क्या SDRF ने दौसा में हुए आर्यन रेस्क्यू से सबक लेकर अपने काम की योजना नहीं बनाई?
- सही समय का चुनाव नहीं: क्या रेस्क्यू टीम ने प्लान को तय करने और अमल में लाने के लिए सही समय का चुनाव नहीं किया?
- प्लान ए और बी को एकसाथ शुरू करना चाहिए था: क्या शुरुआत से ही प्लान ए (कैमरा और रस्सी से संपर्क) और प्लान बी (खुदाई और पाइलिंग) को एक साथ नहीं चलाना चाहिए था?
- देसी जुगाड़ पर निर्भरता: रेस्क्यू टीम तकनीकी साधनों की जगह देसी जुगाड़ पर ज्यादा भरोसा क्यों कर रही है?
- टीम पर भरोसे का संकट: इस तरह की घटनाओं के बाद क्या NDRF और SDRF पर लोगों का भरोसा बना रह पाएगा?
रेस्क्यू टीम के दावे और असफलता
रेस्क्यू के पहले ही दिन, NDRF और SDRF की टीम ने दावा किया था कि बच्ची को रात तक बचा लिया जाएगा। लेकिन तकनीकी खामियों और सही उपकरणों की कमी के कारण ऑपरेशन में देरी हो गई। प्लान बी के तहत खुदाई और पाइलिंग जैसे कार्यों में समय पर निर्णय नहीं लिया गया।
आर्यन रेस्क्यू से सबक न लेना बना बड़ी चूक
दौसा में हुए आर्यन रेस्क्यू में असफलता के बाद भी चेतना के मामले में टीम ने सही निर्णय नहीं लिया। आर्यन को बचाने में असफल रहने के बावजूद NDRF और SDRF ने इस घटना से सबक लेकर अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं किया।