Overseas Education: विदेश में शिक्षा या संघर्ष? जानें अधूरी सरकारी योजना की पूरी कहानी

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Overseas Education

Overseas Education: सपने तो हर किसी के पास होते हैं, लेकिन उनमें जान फूंकने की ताकत कुछ ही लोगों में होती है। कभी-कभी हालात और सीमित संसाधन इंसान के हौसले को दबाने की कोशिश करते हैं, पर असली संघर्ष वहीं शुरू होता है, जहां उम्मीदें जिंदा रहती हैं। (Overseas Education)मैं जयपुर की एक मध्यम वर्गीय परिवार की छात्रा हूं, जिसने विदेश में पढ़ाई करने का सपना तो देखा था, लेकिन इसे सच करने का हौसला शायद किस्मत से ही मिला।

जब सरकार ने विदेश शिक्षा के लिए निशुल्क योजना शुरू की, तो मेरे मन में उम्मीदों की एक नई किरण जागी। मैंने इस योजना के लिए आवेदन किया, हालांकि मुझे यकीन नहीं था कि मेरा चयन होगा। लेकिन जब चयन की खबर मिली, तो ऐसा लगा जैसे मेरे सपनों को पंख लग गए हों। अब मेरा सपना केवल मेरा नहीं रहा, बल्कि उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गया है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखने की हिम्मत रखते हैं।

खुशी से भरा वह दिन

विदेश में पढ़ाई का सपना साकार होने की खबर से मैं और मेरा परिवार बेहद खुश थे। घरवालों से दूर रहने का ख्याल कठिन था, लेकिन नए अनुभवों और अवसरों ने मुझे उत्साहित कर दिया। पिता ने हमेशा बड़े लाड़-प्यार से रखा था, और यह पहला मौका था जब मैं उनसे इतनी दूर जा रही थी। वर्तमान में, मैं ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में पढ़ाई कर रही हूं।

शुरुआत अच्छी, लेकिन हालात बदतर

यहां आने के शुरुआती दिन अच्छे बीते। नई जगह, नए लोग और एक अलग माहौल ने मुझे प्रेरित किया। लेकिन बीते चार महीनों से जिंदगी एक संघर्ष बन गई है। सरकार ने ट्यूशन फीस का वादा तो निभाया, लेकिन रहने-खाने के खर्च के लिए किया गया समर्थन अधूरा रह गया। मेरा मासिक खर्च लगभग एक लाख रुपए है। शुरुआती दो महीने घरवालों ने एफडी तुड़वाकर और कर्ज लेकर मदद की, लेकिन अब उनसे और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं बची।

मुफ्त का खाना खाने को मजबूर

नियमों के कारण यहां पार्ट-टाइम जॉब करना भी संभव नहीं है। अब हालात ऐसे हैं कि यूनिवर्सिटी से मिलने वाला मुफ्त खाना ही सहारा है। सुबह जल्दी उठकर लाइन में लगती हूं ताकि फ्रीज में रखा हुआ फ्रोजन फूड ले सकूं। वही खाना एक-दो हफ्ते गर्म करके थोड़ा-थोड़ा खाकर दिन काट रही हूं। यह वह जिंदगी नहीं थी जिसकी मैंने कल्पना की थी।

सरकार की योजनाओं पर सवाल

सरकार से सवाल उठता है कि अगर पूरी मदद नहीं करनी थी, तो ऐसी योजना शुरू ही क्यों की? यह दर्द सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि उन सैकड़ों मध्यम और अल्प आय वर्ग के छात्रों का है, जो “स्वामी विवेकानंद स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस” के तहत विदेश पढ़ने गए हैं।

बजट की अड़चनें और प्रशासनिक खामियां

योजना के तहत ट्यूशन फीस का भुगतान हुआ है, लेकिन रहने और खाने के खर्च का पैसा अभी भी अटका हुआ है।

  • 2023 में चयनित छात्रों को भी पिछली फीस का पैसा नहीं मिला है।
  • योजना की प्रक्रियाओं में देरी के कारण कई छात्रों का भविष्य अधर में है।
  • 2024-25 सत्र के लिए 500 छात्रों की सूची अभी तक जारी नहीं की गई है।

सरकार का आश्वासन

उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमचंद बैरवा ने कहा है कि वित्त विभाग से बजट आना शुरू हो गया है और जिनका पैसा अटका है, उन्हें जल्द ही भुगतान किया जाएगा।

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