अवैध खनन से राजस्थान खोखला, बजरी माफिया की मौज

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करोड़ों रुपए सालाना का है अवैध कारोबार, कानून की नहीं है परवाह

भारत में अवैध खनन एक गंभीर समस्या बन चुका है, जिसमें राजस्थान एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है। खासतौर पर बजरी (रेत) के अवैध खनन ने राज्य की नदियों, पर्यावरण, और कानून-व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाला है। बजरी माफिया न केवल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है, बल्कि यह पुलिस, प्रशासन, और न्यायिक व्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है।

अवैध खनन का स्वरूप और विस्तार

राजस्थान में विशेष रूप से चंबल, बनास, कालीसिंध, और अन्य नदियों से बड़ी मात्रा में अवैध रूप से बजरी निकाली जाती है। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने कई बार इस पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं, लेकिन इसके बावजूद यह धंधा तेजी से फल-फूल रहा है।

अवैध खनन का नेटवर्क तीन स्तरों पर काम करता है:

1. स्थानीय स्तर – गाँवों और कस्बों के छोटे ठेकेदार और ट्रक मालिक रात के अंधेरे में बजरी निकालते हैं।

2. राजनीतिक संरक्षण – इस काम में बड़े नेता और प्रशासनिक अधिकारी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होते हैं।

3. मार्केटिंग और लॉजिस्टिक्स – ट्रक ड्राइवरों, ट्रांसपोर्ट कंपनियों, और कंस्ट्रक्शन माफिया के माध्यम से बजरी को विभिन्न शहरों तक पहुँचाया जाता है।

 

बजरी माफिया की कार्यप्रणाली

बजरी माफिया एक संगठित गिरोह की तरह काम करता है।

रात्रिकालीन गतिविधियाँ – ज्यादातर अवैध खनन रात के समय होता है ताकि प्रशासन की नजरों से बचा जा सके।

हथियारबंद गुंडों की तैनाती – ट्रकों और खनन स्थलों पर माफिया के लोग हथियार लेकर तैनात रहते हैं, जो पुलिस या अन्य किसी भी हस्तक्षेप को रोकते हैं।

पुलिस और प्रशासन को धमकाना – कई मामलों में ईमानदार पुलिस अधिकारियों पर ट्रक चढ़ाने या हमला करने जैसी घटनाएँ सामने आई हैं।

संपत्ति और बैंक खातों में इन्वेस्टमेंट – माफिया द्वारा अवैध कमाई को रियल एस्टेट, होटलों, और अन्य व्यवसायों में निवेश कर सफेद किया जाता है।

बजरी माफिया के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

अवैध खनन केवल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाता, बल्कि इसका व्यापक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी पड़ता है।

1. पर्यावरणीय क्षति

नदियों का जल स्तर कम हो रहा है, जिससे भूजल संकट गहराता जा रहा है।

प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो रहा है, जिससे जलजीवों और जैव विविधता को नुकसान पहुँच रहा है।

 

2. कानून और व्यवस्था पर प्रभाव

पुलिस और प्रशासन पर हमले बढ़ रहे हैं।

अवैध खनन के पैसे से चुनावी राजनीति में गहरी पैठ बनाई जाती है।

संगठित अपराध को बढ़ावा मिलता है।

 

3. आर्थिक प्रभाव

सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान होता है।

अवैध खनन से जुड़े लोगों की संपत्ति में अनियंत्रित वृद्धि होती है, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ती है।

 

सरकार और न्यायालय के प्रयास

सुप्रीम कोर्ट और NGT ने अवैध बजरी खनन पर सख्ती दिखाई है। हाल के वर्षों में कुछ कड़े कदम उठाए गए हैं:

राजस्थान सरकार ने ई-नीलामी और वैध खनन के लिए नियम बनाए।

पुलिस और खनन विभाग द्वारा संयुक्त छापेमारी अभियान चलाए गए।

कई जिलों में अवैध खनन के खिलाफ FIR दर्ज की गई और ट्रक जब्त किए गए।

लेकिन प्रशासनिक कमजोरी और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ये प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो सके।

निष्कर्ष और सुझाव

अवैध खनन एक संगठित अपराध बन चुका है, जिससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

1. सख्त कानून और त्वरित कार्रवाई – अवैध खनन में संलिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी सजा और जब्ती की प्रक्रिया तेज की जाए।

2. प्रौद्योगिकी का उपयोग – ड्रोन सर्विलांस और GPS ट्रैकिंग जैसी तकनीक का उपयोग कर अवैध खनन की निगरानी की जाए।

3. पुलिस और प्रशासन की स्वतंत्रता – पुलिस और प्रशासन पर राजनीतिक दबाव को खत्म किया जाए, ताकि वे निष्पक्ष रूप से कार्रवाई कर सकें।

4. जनता की भागीदारी – आम जनता को जागरूक किया जाए कि वे इस समस्या के खिलाफ आवाज उठाएँ और अवैध खनन की रिपोर्ट करें।

 

यदि सरकार, प्रशासन, न्यायपालिका, और समाज मिलकर प्रयास करें, तो बजरी माफिया की कमर तोड़ी जा सकती है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सकता है।

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