Pani Devi Gold Medal: 9 मार्च 2025, कर्नाटक के बेंगलुरु का कांतीरवा स्टेडियम। 45वीं राष्ट्रीय मास्टर्स एथलेटिक प्रतियोगिता में 100 मीटर दौड़ शुरू होने वाली थी। 80-85 साल की महिला खिलाड़ी स्पोर्ट्स किट में तैयार खड़ी थीं, लेकिन सबकी निगाहें एक महिला पर टिकी थीं… 93 साल की पानी देवी, पारंपरिक लाल घाघरा-ओढ़नी पहने, पैरों में पट्टी बंधी, लेकिन हौसला अडिग। रेस शुरू हुई और 45 सेकंड में ‘गोल्डन दादी’ ने सबको पीछे छोड़ दिया! सिर्फ 100 मीटर रेस ही नहीं, डिस्कस थ्रो और शॉटपुट में भी गोल्ड जीतकर उम्र को सिर्फ एक नंबर साबित कर दिया। लेकिन पानी देवी की असली दौड़ ट्रैक पर नहीं, जिंदगी के संघर्षों के बीच थी। एक ऐसी दौड़, जिसमें गरीबी, समाज की बेड़ियां और हालात उसके खिलाफ थे।
पोते को कोचिंग देते देख खुद भी मैदान में उतर गईं!
बीकानेर के चौधरी कॉलोनी में पानी देवी से मिलने पहुंचे, तो पूरा घर मेडल की खुशी में झूम रहा था। पोते-पोतियां गोल्ड मेडल को छूकर देख रहे थे। दादी ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर राम-राम किया और फिर उनकी कहानी शुरू हुई… “मेरा पोता जयकिशन खुद एथलीट है। एक दिन मैंने उसे पैरा एथलीट्स को शॉटपुट, डिस्कस और क्लब थ्रो सिखाते देखा। मैंने कहा—’ये तो मैं भी कर सकती हूं!'” बस, उसी दिन से पोते ने ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। स्टेट टूर्नामेंट में जाने से पहले दादी ने पोते से साफ कहा—”किसी को मत बताना!” नवंबर 2023 में अलवर में स्टेट चैंपियन बनीं। फरवरी 2024 में पुणे में नेशनल गोल्ड जीता। लेकिन जब पोते ने वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया, तो पूरा गांव जान गया! गांववाले पैर छूने आ गए, तो दादी नाराज हो गईं—”सबको क्यों बताया?”
चोट लगी, लेकिन खेलने का जज्बा नहीं टूटा
बेंगलुरु जाने से कुछ दिन पहले, पानी देवी के टखने और घुटने में चोट लग गई। फिजियोथेरेपी करवाई, लेकिन दर्द कम नहीं हुआ। पोते जयकिशन को चिंता थी कि दादी खेल भी पाएंगी या नहीं। लेकिन दादी बोलीं—”इतनी मेहनत के बाद आए हैं, तो खेलकर ही जाएंगे। ज्यादा से ज्यादा हार ही जाएंगे न?”
रेस के दौरान अन्य महिलाओं ने स्पोर्ट्स किट पहनी थी, लेकिन पानी देवी ने घाघरा-ओढ़नी में दौड़ने की जिद ठान ली। पोते ने फेडरेशन के अधिकारियों को समझाया और दादी को खेलने की अनुमति मिल गई। फिर क्या था… दौड़ीं और गोल्ड जीत लिया!
फिटनेस ऐसी कि जवान भी पीछे छूट जाएं!
न चश्मा, न बीपी, न शुगर!… सुबह से रात तक एक्टिव। पानी देवी आज भी घर के सारे काम खुद करती हैं। भैंसों को नहलाती हैं, दूध निकालती हैं, मंदिर जाती हैं। शाम को पोते के साथ करनी सिंह स्टेडियम में युवा एथलीट्स के साथ ट्रेनिंग करती हैं। एक्सपायरी दवा खाने से सुनने में थोड़ी दिक्कत हो गई, लेकिन उनके हौसले में कोई कमी नहीं आई।
ग्राउंड में उतरने से पहले करती हैं प्रणाम
गांव की सबसे बुजुर्ग महिला होने के बावजूद, पानी देवी का जुनून किसी युवा से कम नहीं।
पोता जयकिशन कहता है, “मैं दादी को कम ट्रेनिंग करने के लिए कहता हूं, लेकिन वे मानती ही नहीं!”
अगर सेहत थोड़ी भी नरम हो, तो घर के आंगन में ही डिस्कस और शॉटपुट की प्रैक्टिस कर लेती हैं।
वरना स्टेडियम जाकर बाकायदा ग्राउंड को प्रणाम करके मैदान में उतरती हैं।
बचपन में खेलने की इजाजत नहीं थी, लेकिन आज खेल जगत में चमक रही हैं
न स्कूल गईं, न खेल सकीं। 15 साल की उम्र में शादी हो गई। 50 की उम्र में पति गुजर गए। पांच बेटों और तीन बेटियों की परवरिश के लिए खेती में मजदूरी की, पांच कोस पैदल चलकर सूत बेचने जाती थीं। संघर्षों के बीच बीकानेर में ज़मीन खरीदी, जहां आज उनका पूरा परिवार बसा हुआ है।
स्वीडन नहीं जा पाईं…
2024 में पुणे नेशनल चैंपियनशिप जीतने के बाद स्वीडन में इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलने का मौका मिला था।
लेकिन 4-5 लाख रुपये के खर्च के कारण वे नहीं जा पाईं। अब इंडोनेशिया में इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई किया है। लेकिन फिर वही आर्थिक बाधा सामने आ रही है। पानी देवी ने पीएम नरेंद्र मोदी से अपील की—”मोदीजी! मुझे विदेश भेज दीजिए, मैं वहां भी मेडल जीतकर आऊंगी!” बेंगलुरु से लौटते वक्त अहमदाबाद, सूरत, आणंद और बीकानेर में युवा खेल संघों ने उनका भव्य स्वागत किया। आज पानी देवी सिर्फ एक एथलीट नहीं, बल्कि उम्र और हालात से हार न मानने वाली मिसाल बन गई हैं।