kotputli incident updates: कोटपूतली के किरतपुरा गांव में 150 फीट गहरे बोरवेल में गिरी तीन वर्षीय चेतना को 10 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद बुधवार, 1 जनवरी को बाहर निकाला गया। (kotputli incident updates)लेकिन अफसोस, उसे बचाया नहीं जा सका। चेतना को तुरंत जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मां-पिता की उम्मीदें टूटीं, गांव में पसरा मातम
चेतना के माता-पिता को पहले ही अनहोनी की आशंका थी, क्योंकि मासूम ने 10 दिनों तक भूख और प्यास के बीच संघर्ष किया। उनकी आंखों में गहरी उदासी और दर्द साफ झलक रहा है। पूरा गांव इस त्रासदी से शोक में डूब गया है।
रेस्क्यू ऑपरेशन में कई बाधाएं, 10 दिन तक चला अभियान
रेस्क्यू टीम को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। शुरुआत में 30 दिसंबर को चेतना को बाहर निकालने की उम्मीद थी, लेकिन सुरंग की जटिल खुदाई और दिशा भटकने के कारण ऑपरेशन में देरी हुई।
सबसे गहरी खुदाई वाला प्रदेश का सबसे बड़ा अभियान
यह रेस्क्यू ऑपरेशन राजस्थान के इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण अभियानों में से एक बन गया। आमतौर पर बोरवेल रेस्क्यू 50-75 फीट की गहराई तक सीमित रहते हैं, लेकिन चेतना 170 फीट गहरे बोरवेल में फंसी थी। इस वजह से टीम को असाधारण मेहनत करनी पड़ी।
कठिन सुरंग खुदाई और तकनीकी चुनौतियां
चेतना को बचाने के लिए 170 फीट गहरी और 36 इंच चौड़ी सुरंग खोदी गई। कठोर पत्थरों ने खुदाई को और मुश्किल बना दिया। एनडीआरएफ और रैट माइनर टीम ने हॉरिजेंटल सुरंग तैयार की, ताकि चेतना तक पहुंचा जा सके।
पहले प्लान में असफलता, फिर अपनाया गया दूसरा तरीका
शुरुआत में हुक के जरिए चेतना को खींचने की कोशिश की गई थी, लेकिन मिट्टी ढहने से वह और गहराई में फंस गई। इसके बाद सामानांतर खुदाई कर सुरंग तैयार की गई और चेतना को बाहर निकाला गया।
23 दिसंबर को खेलते वक्त बोरवेल में गिरी थी चेतना
चेतना 23 दिसंबर को खेलते समय बोरवेल में गिर गई थी। सूचना मिलते ही प्रशासन ने रेस्क्यू अभियान शुरू किया। पहले दिन ही उसे हुक से बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन असफलता के बाद सुरंग खोदने का विकल्प अपनाया गया।
10 दिनों की मेहनत के बाद भी नहीं बच सकी चेतना
रेस्क्यू टीम ने दिन-रात मेहनत कर चेतना को बाहर निकालने में सफलता पाई, लेकिन लंबी भूख और प्यास के कारण उसका जीवन नहीं बचाया जा सका। इस घटना ने पूरे गांव और प्रशासन को गहरे दुख में डाल दिया है।
यह हादसा एक बार फिर सुरक्षा मानकों और खुले बोरवेल की समस्याओं पर गंभीर सवाल खड़े करता है।