Delhi Pollution: सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली में प्रदूषण जांच केंद्र (PCC) मनमाने तरीके से पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (PUC) सर्टिफिकेट जारी कर रहे थे। (Delhi Pollution)कई गाड़ियों को उत्सर्जन मानकों को पूरा न करने के बावजूद प्रमाणपत्र दिया गया, जिससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं।
डेटाबेस में उत्सर्जन आंकड़ों की गड़बड़ी
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद, उत्सर्जन डेटा और वाहनों के राष्ट्रीय डेटाबेस (VAHAN) के बीच कोई लिंक नहीं बनाया गया। इससे PCCs को वाहनों के BS उत्सर्जन मानक को मैन्युअल रूप से चुनने की छूट मिली, जिससे हेराफेरी की संभावना बढ़ गई।
रजिस्ट्रेशन और PUC जांच में बड़ा अंतर
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या और किए गए PUC परीक्षणों में भारी असंतुलन पाया गया। यह संकेत करता है कि वाहन मालिक नियमित रूप से प्रदूषण जांच नहीं करवा रहे हैं।
परिवहन विभाग (DoT) ने PUC उपकरणों की जांच या PCCs की दक्षता सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। कई केंद्र ऐसे थे, जो बिना किसी निरीक्षण के प्रदूषण प्रमाणपत्र जारी कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार निर्देश देने के बावजूद, 2009 से लंबित रिमोट सेंसिंग उपकरणों को अब तक लागू नहीं किया गया। यह तकनीक बिना वाहन को रोके उत्सर्जन जांच कर सकती थी।
वाहन फिटनेस परीक्षण में गड़बड़ी
दिल्ली में वाहनों की फिटनेस जांच की प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में है। 2018-19 से 2020-21 के बीच झुलझुली के स्वचालित परीक्षण केंद्र का उपयोग बहुत कम हुआ, जबकि बुराड़ी केंद्र में अधिकतर जांच केवल दृश्य निरीक्षण के आधार पर की गई। 2014-15 से 2018-19 के बीच 20% से 64% वाहन मालिकों ने अपने फिटनेस प्रमाणपत्र नवीनीकरण नहीं करवाए। इसके बावजूद DoT ने इन्हें सूचित करने के लिए कोई प्रभावी प्रणाली नहीं बनाई।
पुराने वाहनों के उत्सर्जन नियंत्रण पर उदासीनता
CPCB द्वारा पुराने डीजल वाहनों में डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) लगाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन DoT ने 2017 में MoRTH से नियमों में बदलाव की मांग की, जो अब तक लंबित है। सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद, दिल्ली में पुराने वाहनों का पंजीकरण जारी रहा। 2018-21 के बीच केवल 6.27% पुराने वाहनों को डीरजिस्टर किया गया, जबकि 41 लाख से अधिक पुराने वाहन (ELV) दिल्ली में मौजूद हैं।
एनसीआर से आने वाले वाहनों की निगरानी कमजोर
दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाहनों की उत्सर्जन जांच बेहद कमजोर रही। 128 एंट्री पॉइंट्स में से केवल 7 पर ही जांच दल तैनात थे, जबकि प्रवर्तन शाखा में 1,134 कर्मियों की जरूरत के मुकाबले सिर्फ 292 कर्मचारी कार्यरत थे। सीएजी ने सिफारिश की है कि सरकार को प्रदूषण जांच की विश्वसनीयता बढ़ाने, स्वचालित परीक्षणों को अपनाने, पुराने वाहनों पर नियंत्रण और प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता बढ़ाने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।