Haryana Elections: हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Elections)में एआईसीसी ने पहली बार पड़ोसी राज्य राजस्थान से बड़ी संख्या में स्टार नेताओं को मैदान में उतारा। कांग्रेस को उम्मीद थी कि यह कदम पार्टी को हरियाणा में मजबूती प्रदान करेगा। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनाव का सीनियर आब्जर्वर बनाया गया, जबकि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और पीसीसी चीफ गोविंदसिंह डोटासरा जैसे प्रमुख नेताओं को स्टार प्रचारक के रूप में सक्रिय भूमिका दी गई।
बड़ी संख्या में नेताओं की तैनाती
कांग्रेस ने इस चुनाव में लगभग 50 नेताओं की टीम को हरियाणा में तैनात किया, जिनमें 25 से अधिक नेता पूर्व मंत्री, वर्तमान सांसद या विधायक थे। पार्टी ने हरियाणा में प्रचंड बहुमत से जीत की उम्मीद जताई थी, लेकिन परिणाम ने उन्हें निराश कर दिया। हरियाणा की राजनीति में इस तरह की बड़ी संख्या में नेताओं का कैंप पहली बार देखा गया।
रैलियों का असर
राजस्थान के नेताओं ने सीमावर्ती 15 विधानसभा क्षेत्रों सहित अन्य इलाकों में 45 से अधिक सभाएं और रैलियां आयोजित कीं। इनमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की रैलियां भी शामिल थीं, जहां राजस्थान के नेताओं ने प्रमुखता से भाग लिया। लेकिन वोटों की संख्या उतनी नहीं थी, जितनी कांग्रेस को चाहिए थी।
निराशाजनक परिणाम
इस बीच, पीसीसी चीफ गोविंदसिंह डोटासरा ने सुबह 10 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी थी, जिसमें वे परिणामों के प्रति उत्साहित थे। लेकिन जैसे-जैसे रुझान बदलते गए और बीजेपी के पक्ष में बढ़ने लगे, डोटासरा ने प्रेस कांफ्रेंस में भाग नहीं लिया। इससे पार्टी नेताओं में निराशा और चिंता का माहौल बन गया।
सीमावर्ती सीटों पर जीत
हरियाणा से सटी 22 सीटों में से कांग्रेस केवल 8 सीटें जीत पाई, जिनमें पुनवाना, नुह, फिरोजपुर झिरका, लोहारु, नांगल चौधरी, सिरसा, आदमपुर, फतेहाबाद और झज्जर शामिल हैं। इसके विपरीत, बीजेपी ने महेंद्रगढ़, नारनोल, बाढ़रा, भिवानी, अटेली, बावल, कोसली, रेवाड़ी, सोहना, फरिदाबाद और नलवा जैसी कई प्रमुख सीटें जीती।
भविष्य की चुनौतियां
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में कांग्रेस को अपनी रणनीति और प्रचार तरीकों में सुधार की आवश्यकता है। यदि पार्टी भविष्य में इस तरह के चुनावों में बेहतर परिणाम चाहती है, तो उसे अपनी पहचान को मजबूत करने और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की दिशा में काम करना होगा।