इमरजेंसी नहीं सिर्फ तारीख, ये लोकतंत्र की हत्या थी: थरूर का तीखा हमला इंदिरा-संजय नीतियों पर

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Shashi Tharoor

Shashi Tharoor: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 1975 में लगी इमरजेंसी को लेकर बड़ा बयान दिया है। मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने इसे सिर्फ(Shashi Tharoor) भारतीय इतिहास के ‘काले अध्याय’ के रूप में नहीं, बल्कि एक जरूरी चेतावनी और सीख के रूप में देखने की बात कही।

शशि थरूर ने लिखा कि अनुशासन और व्यवस्था कायम रखने के नाम पर कई बार ऐसे फैसले लिए जाते हैं, जो अंततः क्रूरता में बदल जाते हैं और जिन्हें किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।

नसबंदी को बताया ‘मनमाना और क्रूर फैसला’

थरूर ने 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल के दौरान संजय गांधी द्वारा चलाए गए नसबंदी अभियान को निशाना बनाया। उन्होंने लिखा –

“गरीब ग्रामीण इलाकों में लक्ष्य पूरा करने के लिए हिंसा और दबाव का सहारा लिया गया। नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियां बेरहमी से तोड़ी गईं। हजारों लोग बेघर हुए और उन्हें अनदेखा कर दिया गया।”

थरूर ने इसे मनमाना और क्रूर फैसला बताया, जिसका जनता के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा।

लोकतंत्र की चेतावनी है इमरजेंसी

शशि थरूर ने इमरजेंसी को लोकतंत्र के लिए चेतावनी करार देते हुए लिखा कि सत्ता के केंद्रीकरण, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने की प्रवृत्ति कभी भी लौट सकती है।

उन्होंने लिखा –

“इमरजेंसी हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं, बल्कि एक बहुमूल्य विरासत है जिसे हर दिन बचाना और संजोना पड़ता है।”

50वीं वर्षगांठ से पहले आया लेख

शशि थरूर का यह लेख उस समय आया है जब आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ नजदीक है। यह लेख राजनीतिक गलियारों में नई बहस को जन्म दे सकता है, खासकर तब, जब खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने पार्टी के इतिहास के एक विवादित अध्याय पर सवाल उठाए हैं।

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