किस तरह बन रहे हैं डंपर ‘मौत के पहिए’?
- ओवरलोडिंग और फिटनेस की कमी: न वजन नियंत्रण, न फिटनेस चेक — भारी भरकम लदान के साथ डंपर सडक़ों पर दौड़ते हैं।
- रूट परमिट का दुरुपयोग: रूट परमिट न होने के बावजूद वाहन चलते हैं या नकली परमीट के भरोसे निकल पड़ते हैं।
- सुरक्षा नियमों की अनदेखी: ‘दिन में प्रवेश वर्जित’ के आदेश सिर्फ कागज़ों में ही सीमित रह जाते हैं।
जयपुर का चौंकाने वाला आंकड़ा
नवंबर 2025 में जयपुर में हुई एक ही दुर्घटना में एक ओवरलोड डंपर ने कई वाहनों को कुचल दिया — घटना में 12 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। यह सिर्फ एक उदाहरण है: 2023 में जयपुर शहर में सड़क हादसों में कुल 848 मौतें दर्ज हुईं, जिनमें बड़ी संख्या भारी वाहनों से जुड़ी थी।
कौन है जिम्मेदार? — संरक्षण और रिश्वत का तानाबाना
सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन की नाक के नीचे ये वाहन कैसे घूम रहे हैं? स्थानीय स्तर पर यह व्यापक धारणा है कि हर अवैध डंपर के पीछे कोई न कोई संरक्षण होता है — ठेकेदार, राजनेता या अफसर। रिश्वत का जाल इतना मध्यम नहीं, बल्कि प्रणालीगत बन चुका है, जिससे नियम लागू करना मुश्किल हो गया है।
नियम तो हैं, पर प्रवर्तन नहीं: नगर निगम, A.D.A. और कई सरकारी विभागों के अपने डंपर हैं — जिन्हें विशेष छूट दी जाती है। यह छूट अक्सर पुलिस-प्रशासन और परिवहन विभाग के मौन समर्थन से दी जाती है।
डंपरों से सड़क संरचना को भी भारी क्षति
टनों भार उठाने वाले डंपर न सिर्फ जानों को खतरे में डाल रहे हैं, बल्कि सड़कों की हालत को भी बुरी तरह बिगाड़ रहे हैं। टूटती सड़कों के मरम्मत-खर्च और जीवनरक्षक बुनियादी ढांचे पर इसका नकारात्मक असर साफ दिखता है।
संरक्षण खत्म करने के लिए त्वरित, डिजिटल और जवाबदेह कदम
- पूर्ण दिन-कालीन प्रतिबंध: दिन में डंपर प्रवेश पर सख्त और ज़ीरो-टॉलरेंस नीति लागू करें।
- GPS एवं ऑटो-चालान अनिवार्य: हर डंपर में रीयल-टाइम GPS और ई-चालान सिस्टम लगाया जाए — ऑनस्पॉट चालान व डिजिटल ट्रेसबिलिटी ज़रूरी।
- डंपर मॉनिटरिंग टास्क फ़ोर्स: जिला-स्तरीय विशेष टीम गठित हो — पुलिस, परिवहन, नगर निगम व नागरिक प्रतिनिधियों का संयुक्त निरीक्षण।
- जवाबदेही तय करें: हर सड़क-दुर्घटना में संबंधित थाना प्रभारी व परिवहन अधिकारी की जवाबदेही तय हो तथा दोष सिद्ध होने पर सख्त कार्रवाई।
- ठेकेदारों के लाइसेंस रिव्यू: ओवरलोडिंग करने वाले ठेकेदारों के लाइसेंस तत्काल निलंबित/निरस्त किए जाएँ।
- सार्वजनिक-फीडबैक और हॉटलाइन: नागरिक शिकायतों के लिए 24×7 डिजिटल हॉटलाइन व व्हाट्सऐप/एसएमएस पोर्टल सक्रिय किया जाए।
डंपर आतंक शासन-प्रशासन की परीक्षा
डंपर अब सिर्फ एक वाहन की समस्या नहीं रह गया — यह प्रशासनिक उदासीनता, संरक्षण व प्रणालीगत भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुका है। यदि शासन-प्रशासन जनता की सुरक्षा को वास्तविक प्राथमिकता मानता है तो आधे-अधूरे आदेश छोड़कर कठोर, डिजिटल और जवाबदेह नीतियाँ लागू करना ही बचेगा। वरना ये “लोहे के राक्षस” और अधिक जानें और सड़कों को तहस-नहस करते रहेंगे।

































































