Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शताब्दी समारोह के तहत असम यात्रा के दौरान बुद्धिजीवियों, विद्वानों, संपादकों, लेखकों और उद्यमियों के एक प्रतिष्ठित समूह को संबोधित किया। संवादात्मक सत्र में उन्होंने संघ की सभ्यतागत दृष्टि, (Mohan Bhagwat)समकालीन राष्ट्रीय मुद्दों और पूर्वोत्तर में चल रहे कार्यक्रमों पर विस्तृत विचार रखे।
‘भारत और हिंदू पर्यायवाची’
भागवत ने कहा कि ‘हिंदू’ केवल एक धार्मिक शब्द नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सभ्यतागत निरंतरता को दर्शाता है। उन्होंने स्पष्ट किया, “भारत और हिंदू पर्यायवाची हैं”, और कहा कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की आवश्यकता नहीं क्योंकि इसकी सभ्यतागत पहचान स्वयं यह दर्शाती है। उन्होंने संघ के मूल दर्शन की व्याख्या करते हुए बताया कि आरएसएस की स्थापना कभी किसी का विरोध करने के उद्देश्य से नहीं हुई थी, बल्कि चरित्र निर्माण और भारत को विश्वगुरु बनाने के उद्देश्य से की गई थी। भागवत ने श्रोताओं से आग्रह किया कि वे कथित धारणाओं पर भरोसा करने के बजाय शाखा में जाकर संगठन को स्वयं समझें।
पांच प्रमुख सामाजिक परिवर्तन (पंच परिवर्तन)
भागवत ने पंच परिवर्तन—सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन (परिवार जागरण), नागरिक अनुशासन, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण—पर विस्तार से बात की। उन्होंने विशेष रूप से परिवार की भूमिका और परंपरागत कथाओं को पीढ़ियों तक संजोकर रखने पर ज़ोर दिया, ताकि युवा पीढ़ी में जिम्मेदारी और सांस्कृतिक गर्व विकसित हो सके।
अवैध घुसपैठ, जनसंख्या नीति और सामाजिक संतुलन
भागवत ने असम में बदलते जनसांख्यिकीय परिदृश्य और सांस्कृतिक संरक्षण की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए नागरिकों से सतर्क रहने का आह्वान किया। उन्होंने अवैध घुसपैठ, संतुलित जनसंख्या नीति की आवश्यकता और विभाजनकारी धर्मांतरणों के विरोध पर भी बात की। साथ ही सोशल मीडिया के सही और जिम्मेदार उपयोग पर युवाओं को सजग रहने की सलाह दी।
उन्होंने आरएसएस स्वयंसेवकों के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान का स्मरण करते हुए असहयोग आंदोलन और ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान स्वयंसेवकों की भूमिका को रेखांकित किया। डॉ. भागवत ने संगठन की इतिहास-आधारित छवि और जनता के साथ जुड़े रहने के महत्त्व पर भी बल दिया।



































































