राजस्थान के अंता में सियासी हलचल: महिलाओं ने थामा प्रचार का मोर्चा, दोनों दलों में बढ़ी बेचैनी!

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Rajasthan Politics

Rajasthan Politics: बारां जिले की अंता विधानसभा उपचुनाव की राजनीतिक सरगर्मी इन दिनों चरम पर है। यह मुकाबला केवल भजनलाल सरकार और विपक्षी कांग्रेस के बीच सीट जीतने तक सीमित नहीं रहा — यह राजनीति में महिलाओं की अग्रिम पंक्ति में उपस्थिति का प्रतीक भी बन गया है। (Rajasthan Politics)महिला नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रत्याशियों की पत्नियों ने मैदान में कदम रखकर चुनाव का स्वर बदल दिया है।

भाजपा की दिग्गज महिला एंट्री

भाजपा ने स्थानीय प्रत्याशी मोरपाल सुमन के प्रचार के लिए कई दिग्गज महिला नेताओं को मैदान में उतारा। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने मोरपाल सुमन के पक्ष में रैलियाँ और जनसभाएँ कीं और जीत का भरोसा जताया। महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण पर मंजू बाघमार ने पार्टी के एजेंडे का बचाव करते हुए सरकार की उपलब्धियों का जोरदार बचाव किया। भरतपुर के विधायक नौक्षम चौधरी ने अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के बीच जाकर वोट मांगे और प्रधानमंत्री द्वारा महिलाओं के लिए चलाई गई योजनाओं का हवाला देकर समर्थन जुटाने का प्रयास किया। उनके अनुसार महिलाएं भाजपा के साथ कदम से कदम मिला रही हैं।

 ‘हर घर में भाया की बहू’

वहीं कांग्रेस ने भी महिला शक्ति को पूरी तरह सक्रिय किया है। पूर्व विधायक मीनाक्षी चंद्रावत ने गांव-गांव जाकर लोगों से जनसमर्थन माँगा और भावुक अंदाज में क्षेत्रीय कनेक्शन पर जोर दिया। कांग्रेस जिला प्रमुख उर्मिला जैन भी महिला मंडल के साथ लगातार प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं और महंगाई व स्थानीय योजनाओं के मुद्दे उठाकर भाजपा पर निशाना साध रही हैं।

 प्रत्याशियों की पत्नियों की सक्रियता

इस चुनाव की एक प्रमुख खासियत यह रही कि दोनों प्रमुख प्रत्याशियों की पत्नियों ने पारंपरिक गृह-भूमिका छोड़कर सार्वजनिक प्रचार संभाला। कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद जैन भाया की पत्नी उर्मिला भाया गांव-गांव जाकर महिलाएं और परिवारों से समर्थन माँग रही हैं। भाजपा प्रत्याशी मोरपाल सुमन की पत्नी नटी बाई भी अपनी सखी-सहेलियों के साथ गीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए भावनात्मक जुड़ाव बना रही हैं। दोनों पक्ष महिलाओं के मुद्दों और जनभावना को अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। भाजपा सरकार के पक्ष में महिला सुरक्षा और सरकारी योजनाओं को प्रमुखता दी जा रही है, जबकि कांग्रेस महंगाई, सरकारी योजनाओं के ठहराव और आम जनता की आर्थिक परेशानी को मुद्दा बनाकर महिलाएं तक पहुँच रही है।

क्या बदलेगा चुनाव का स्वर?

अंता उपचुनाव में नारी शक्ति की यह सक्रियता स्थानीय राजनीति का नया संकेत है। पारंपरिक पुरुष नेतृत्व के साथ महिलाओं की बढ़ती भागीदारी चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है — खासकर ग्रामीण और महिला वोटबैंक में।

 

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