Shri Hari Vishnu: हजारों वर्षों पहले लिखे गए वैदिक और पुराणिक ग्रंथों में जो ब्रह्मांड-चित्रण है, वह आज भी विज्ञान को चौंकाता है। विष्णु का क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में शयन, नाभि से उत्पन्न कमल, और उस पर बैठे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा—यह दृश्य केवल धार्मिक कल्पना नहीं, बल्कि एक गूढ़ ब्रह्मांडीय सिद्धांत है, (Shri Hari Vishnu) जिसे आधुनिक विज्ञान भी कई स्तरों पर स्वीकार करने लगा है।
पुराणिक वर्णन
श्रीमद्भागवत महापुराण, विष्णु पुराण और अन्य ग्रंथ बताते हैं कि: सृष्टि के एक महायुग के अंत में, समस्त ब्रह्मांड क्षीरसागर (कॉस्मिक ओशन) में विलीन हो जाता है। भगवान विष्णु योगनिद्रा में विश्राम करते हैं। जब नया सृष्टिचक्र प्रारंभ होता है, तो उनकी नाभि से एक कमल प्रकट होता है—जो जीवन के बीज का प्रतीक है। इस कमल पर ब्रह्मा प्रकट होकर सृष्टि का निर्माण करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक विज्ञान, विशेषकर कॉस्मोलॉजी (Cosmology) और क्वांटम फिज़िक्स, इस चित्रण को कई तरीकों से समझने लगा है , कॉस्मिक ओशन (क्षीरसागर) = क्वांटम वैक्यूम ,वैज्ञानिक मानते हैं कि पूरा ब्रह्मांड एक “Quantum Field” में तैरता है, जो शून्य नहीं है, बल्कि अनंत ऊर्जा से भरा है। वैदिक क्षीरसागर का दूधिया, असीम जल इसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा का रूपक है।
योगनिद्रा = सृष्टि का सुषुप्त चरण
बिग बैंग से पहले ब्रह्मांड एक “Singularity” की अवस्था में था—न कोई स्थान, न समय, केवल ऊर्जा और संभावनाएं।
यही “विष्णु का शयन” है, जहाँ सक्रिय सृष्टि नहीं, बल्कि संभावनाओं का मौन भंडार है।
नाभिकमल = विस्तार का बिंदु
वैज्ञानिक “Cosmic Inflation” कहते हैं—एक सूक्ष्म बिंदु से अनंत ब्रह्मांड का विस्तार।
विष्णु की नाभि से निकला कमल उसी विस्तार का प्रतीक है—सृष्टि का पहला फूल।
ब्रह्मा = सृजन का प्रोग्राम
जैसे कंप्यूटर में कोडिंग से पूरी प्रणाली संचालित होती है, वैसे ही ब्रह्मा को वैदिक ज्ञान में “सृष्टि का प्रोग्रामर” माना गया है।
आधुनिक मान्यता
कार्ल सेगन (प्रसिद्ध खगोलशास्त्री) ने कहा था कि हिंदू धर्म का सृष्टि-चक्र (Creation & Dissolution) का विचार, आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान के सिद्धांतों से अद्भुत मेल खाता है।
वर्नर हाइजेनबर्ग (Quantum Physics के जनक) ने स्वीकार किया कि भारतीय दर्शन ने उन्हें“अनिश्चितता” (Uncertainty) और ब्रह्मांड की लहराती प्रकृति को समझने की गहरी प्रेरणा दी। नासा के कुछ वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हिंदू धर्म में वर्णित ब्रह्मांड की परतें, आकाशगंगाओं के विशाल नेटवर्क और मल्टीवर्स की संभावना से मेल खाती हैं।
प्रेरणा का संदेश
विष्णु का यह चित्रण हमें सिखाता है कि सृष्टि संयोग नहीं, एक नियोजित चक्र है।ऊर्जा और चेतना, दोनों मिलकर ब्रह्मांड को गढ़ते हैं। आध्यात्मिक प्रतीक विज्ञान के सिद्धांतों से अलग नहीं, बल्कि उनका पूर्वज रूप हैं। आज का विज्ञान धीरे-धीरे इस ओर बढ़ रहा है कि ब्रह्मांड केवल पदार्थ और ऊर्जा का खेल नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक अदृश्य, बुद्धिमान व्यवस्था है।
विष्णु का क्षीरसागर-शयन इस अदृश्य व्यवस्था का सबसे सुंदर, दार्शनिक और वैज्ञानिक चित्रण है—जहाँ आस्था और विज्ञान, दोनों एक-दूसरे को प्रणाम करते हैं।
हेमराज तिवारी