Rajasthan:वसुंधरा राजे की सियासी वापसी! क्या अब भाजपा को उनकी जरूरत है, या मोदी-शाह का नियंत्रण आगे?”

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Rajasthan Politics: ओम माथुर,वरिष्ठ संवाददाता न्याय अजमेर, जयपुर। क्या वसुंधरा राजे अब समझ चुकी हैं कि राजस्थान की राजनीति में भाजपा के लिए उनकी भूमिका कम हो गई है? क्या उनका अहंकार और अकड़ अब भाजपा में वापस सक्रिय होने की राह में रुकावट नहीं बनेगी? यह सवाल हाल ही में (Rajasthan Politics)आयोजित राइजिंग राजस्थान समिट के दौरान उठे हैं, जब वसुंधरा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवानी की और समिट में भाग लिया, जबकि इससे पहले वे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सक्रिय नहीं रही थीं।

राजे की वापसी या मोदी-शाह का नियंत्रण?

वसुंधरा राजे की अचानक सक्रियता से यह माना जा रहा है कि उन्हें अब यह अहसास हो गया है कि भाजपा को उनकी जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें भाजपा की जरूरत है। राज्य में भाजपा ने युवा और नए नेताओं की एक मजबूत टीम तैयार कर दी है, और मोदी-शाह के नेतृत्व में पार्टी का नियंत्रण बढ़ चुका है। अब भाजपा में केवल मोदी और शाह का ही दबदबा है, और पार्टी में उन नेताओं को जगह नहीं मिलती जो उनके समकक्ष हो या जो उनकी बात न मानें।

सत्ता से दूर रहने का असर

राजे के सत्ता से दूर रहते हुए उनके समर्थक भी धीरे-धीरे उनसे दूरी बनाने लगे हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद जब उन्होंने 50 से ज्यादा विधायकों के समर्थन का दावा किया था, तो उनकी दावेदारी को नकार दिया गया। लोकसभा चुनाव में 11 सीटें हारने के बाद भी भाजपा ने उन्हें खास तवज्जो नहीं दी। ऐसे में यह साफ दिखता है कि वसुंधरा राजे की राजनीतिक स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही।

मोदी का भरोसा भजनलाल पर

राजे की वापसी का सबसे बड़ा संकेत प्रधानमंत्री मोदी ने दिया है, जब उन्होंने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की तारीफ की। मोदी ने कहा कि भजनलाल की टीम ने कम समय में शानदार काम किया है, और उनका समर्पण सराहनीय है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मोदी का भरोसा भजनलाल में मजबूत है। ऐसे में वसुंधरा को अब भाजपा की मुख्यधारा में वापस आकर अपनी भूमिका खुद नहीं, बल्कि मोदी और शाह के निर्देशों पर निभानी होगी।

भविष्य का राजनीति पथ

राजे के लिए अब भाजपा की राजनीति में वापस आने का रास्ता बहुत आसान नहीं होगा। मोदी और शाह की रणनीतियों के तहत अब राज्य में राजनीति का रंग बदल चुका है। सत्ता से दूर रहने की वजह से उनके समर्थकों की संख्या में भी कमी आई है, और उनके लिए भाजपा में अपनी जगह बनाना मुश्किल हो सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वसुंधरा राजे अपनी भूमिका को समझते हुए भाजपा में सक्रिय होती हैं, या वे किसी अन्य रास्ते पर चलने का फैसला करती हैं।

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