Tonk FIR: टोंक का ट्रिपल तलाक कांड: क्या है इस विवाहिता की कहानी?

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Tonk FIR

Tonk Muslim Women: हिंदुस्तान में लगभग पांच साल पहले ट्रिपल तलाक को अवैध घोषित किया गया था, फिर भी मुस्लिम समाज की विवाहित महिलाएं इसके दंश से जूझ रही हैं। हाल ही में टोंक में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ मौखिक रूप से ट्रिपल तलाक देने की शिकायत दर्ज कराई है। यह मामले महज तीन महीनों में सामने आया है, जो कि पीड़िताओं के संघर्षों को उजागर करता है।

टोंक के गुलजार बाग इलाके की विवाहिता सुरैया खातून का पति उसे बाँझ बताकर छोड़ गया है। सुरैया अब न्याय की आस लेकर कानून के दरवाजे पर खड़ी है। वह अहमदाबाद से अपने पति फुरकान (उर्फ़ क़ैसर) के साथ मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार 21 साल पहले शादी कर के टोंक आई थी।

सुरैया का आरोप है कि शादी के कुछ साल बाद ही पति ने उसे बदसूरत और बाँझ कहकर ताने देना शुरू कर दिया। अपने घर को बचाने के लिए सुरैया ने यह सब सहन किया, लेकिन उसके पति और ससुराल वालों ने उसकी चुप्पी को कमजोरी समझ लिया।

दुर्व्यवहार और उत्पीड़न

सुरैया ने आरोप लगाया कि उसका पति, देवर और ननद उसके साथ मारपीट करते थे और उसे घर से बाहर निकाल देते थे। हाल ही में, पति ने उसे मौखिक रूप से ट्रिपल तलाक दे दिया है। इंसाफ की गुहार लगाते हुए, सुरैया ने सरकार और पुलिस से आरोपी पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग की है। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

पहला मामला नहीं

यह टोंक में ट्रिपल तलाक का पहला मामला नहीं है। पिछले चार महीनों में यह दूसरा मामला है। इससे पहले, कोतवाली थानाक्षेत्र की रूखसाना परवीन ने अपने पति ज़ुबेर अहमद के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा 2019 में बनाए गए मुस्लिम महिला (विवाह एवं अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम के तहत पुलिस से संपर्क किया था। उसने बताया कि उसके पति ने 29 मई को उसके किराए के घर पर आकर उससे झगड़ा किया और पीड़िता से मारपीट करने के बाद तीन बार तलाक बोलकर वहां से चला गया था।

जारी समस्या

मोदी सरकार ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ सख्त कानून बनाया है, जिसमें तीन साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन इसके बावजूद भी ट्रिपल तलाक के मामले नहीं रुक रहे हैं। टोंक में सिर्फ साढ़े तीन महीनों में दूसरा मामला आने से एक बार फिर ट्रिपल तलाक और उसकी पीड़िताओं के दर्द को उजागर किया है।

जैसे-जैसे न्याय की लड़ाई जारी है, सुरैया खातून जैसी महिलाओं की पीड़ा एक कड़ी याद दिलाती है कि वे कानूनी सुरक्षा के बावजूद कितनी मुश्किलों का सामना कर रही हैं। समुदाय और अधिकारियों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन महिलाओं को न्याय और समर्थन मिले।

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