Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने आयोजित एक कार्यक्रम में वैश्विक समुदाय से भारतीयता को आत्मसात करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान विश्व जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उनके समाधान भारत की प्राचीन विचारधारा में निहित हैं। भागवत ने कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में पश्चिमी सोच ने जीवन में विलासिता तो दी है, लेकिन शांति और संतोष नहीं दे सकी। (Mohan Bhagwat)उन्होंने कहा, “विज्ञान और आर्थिक प्रगति ने सुविधाएं दीं, लेकिन दुख और संघर्ष समाप्त नहीं हुए।”
‘शांति’ के असफल प्रयास और इतिहास की पुनरावृत्ति
उन्होंने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि शांति की तमाम कोशिशों के बावजूद युद्ध दोहराए गए। राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन भी इन युद्धों को रोक नहीं पाए। अब दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की आशंका के बीच भारत की ओर देख रही है। भागवत ने स्पष्ट किया कि भारतीयता सिर्फ नागरिकता नहीं है, बल्कि एक जीवन दृष्टिकोण है। उन्होंने कहा, “भारत का स्वभाव पूरे जीवन की सोच से जुड़ा है। हमारे यहां चार पुरुषार्थ हैं और मोक्ष को जीवन का अंतिम लक्ष्य माना गया है।”
धर्म आधारित अनुशासन से भारत की समृद्धि
उन्होंने कहा कि धर्म के अनुशासन के कारण भारत कभी विश्व का सबसे समृद्ध राष्ट्र था और अब पूरी दुनिया एक बार फिर भारत से मार्गदर्शन की उम्मीद कर रही है। भागवत ने लोगों से अपील की कि वे स्वयं और अपने परिवार से शुरुआत करते हुए राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगें। उन्होंने कहा, “दुनिया को रास्ता दिखाना हमारी जिम्मेदारी है।”
इतिहास और पाठ्यक्रम में बदलाव की आवश्यकता
भागवत ने पश्चिमी दृष्टिकोण से पढ़ाए गए इतिहास पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “हम जो इतिहास जानते हैं, वह पश्चिम से पढ़ाया गया है, जिसमें भारत का अस्तित्व बहुत सीमित रूप में दिखता है।” उन्होंने कहा कि भारत के लिए अब समय आ गया है कि वह अपने वास्तविक इतिहास को पहचाने और नई पीढ़ी को सही दिशा दे।