Ramdev Controversy: योग गुरु बाबा रामदेव एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर कानूनी पचड़े में फंस गए हैं। पतंजलि के गुलाब शरबत के प्रमोशन के दौरान रामदेव ने प्रतिद्वंद्वी ब्रांडों पर हमला करते हुए हमदर्द की ‘रूह अफजा’ को कथित तौर पर “शरबत जिहाद” कहा और मस्जिद-मदरसे बनने की बात कही थी। (Ramdev Controversy) इस बयान पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए इसे “अस्वीकार्य” और “हेट स्पीच” करार दिया।
क्या कहा था बाबा रामदेव ने?
3 अप्रैल 2025 को एक प्रचार वीडियो में रामदेव ने कहा…”एक शरबत पीने से मस्जिद-मदरसे बनते हैं, जबकि पतंजलि का शरबत गुरुकुल और विश्वविद्यालय बनाता है।” इस बयान के दौरान उन्होंने संकेतों में ‘रूह अफजा’ को “शरबत जिहाद” और “लव जिहाद” से जोड़ा। इसके बाद पतंजलि ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली जिसमें लिखा गया: “शरबत जिहाद से बच्चों को बचाएं, पतंजलि शरबत लाएं।” यह वीडियो तेजी से वायरल हुआ और करीब 37 मिलियन व्यूज़ बटोर लिए।
हमदर्द की आपत्ति और कोर्ट की सख्ती
हमदर्द कंपनी ने इसे सांप्रदायिक, मानहानिकारक और ब्रांड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला बताते हुए कोर्ट का रुख किया। 21 अप्रैल को हुई सुनवाई में जस्टिस अमित बंसल ने इस बयान को “कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोरने वाला” बताया। हमदर्द के वकील मुकुल रोहतगी ने आरोप लगाया कि रामदेव ने जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाने की कोशिश की और रूह अफजा जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड को बदनाम किया।
रामदेव की सफाई और पलटवार
18 अप्रैल को रामदेव ने बयान पर सफाई दी: “मैंने हमदर्द या रूह अफजा का नाम नहीं लिया। अगर उन्हें लग रहा है कि मैंने उन्हीं के लिए कहा, तो इसका मतलब वे खुद मान रहे हैं!”हमदर्द ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रूह अफजा FSSAI द्वारा प्रमाणित प्राकृतिक उत्पाद है और याचिका में वीडियो हटाने की मांग की गई है।
राजनीतिक और कानूनी असर
दिल्ली हाई कोर्ट ने रामदेव को 22 अप्रैल तक जवाब देने का आदेश दिया है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भोपाल में FIR की मांग की है, साथ ही BNS और IT एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई की भी। कोर्ट ने चेताया कि यदि जवाब संतोषजनक नहीं हुआ तो कड़ा आदेश पारित किया जाएगा।
क्यों है मामला अहम?
यह विवाद केवल व्यापारिक प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द्र को प्रभावित करने वाले कथित हेट स्पीच से जुड़ा है। रामदेव पहले भी कोरोनिल (2021) और भ्रामक विज्ञापनों (2023) को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार झेल चुके हैं।
हमदर्द की 100 साल पुरानी विरासत और विश्वास पर सीधा हमला उनके लिए इस बार भारी पड़ सकता है।