52% नंबर, बिना क्वालिफिकेशन बने डॉक्टर! गडकरी ने खोले शिक्षा और पहचान के दिलचस्प राज

Nitin Gadkari

Nitin Gadkari: केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा लिखित पुस्तक ‘संघातील मानवीय व्यवस्थापन’ का विमोचन शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की उपस्थिति में किया गया।

इस अवसर पर गडकरी ने राजनीति, दर्शन, जीवन के अनुभव और अपनी सोच को लेकर कई बेबाक बातें कहीं। गडकरी ने कहा, “पैसा कमाना गुनाह नहीं है। (Nitin Gadkari)मैं कार्यकर्ताओं को हमेशा कहता हूं कि पैसा कमाना चाहिए, लेकिन राजनीति पैसा कमाने का साधन नहीं बननी चाहिए।”

 भूखे पेट को दर्शन नहीं सिखाया जा सकता

गडकरी ने स्वामी विवेकानंद के विचारों का हवाला देते हुए कहा, “No philosophy can be taught to empty stomach.” उन्होंने कहा कि अगर इंसान के पास भूख मिटाने के साधन नहीं हैं तो वह बड़े विचार नहीं अपना सकता। गडकरी ने बताया कि उन्हें 12वीं कक्षा में केवल 52% अंक मिले थे और वह इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर पाए थे। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, “मैं डॉक्टर नहीं लगता हूं, फिर कैसे ‘डॉ’ लिखूं?”

‘साइकिल रिक्शा हटाना, जीवन का सबसे बड़ा काम’

अपने कामों की चर्चा करते हुए गडकरी ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा योगदान ई-रिक्शा को बढ़ावा देना माना। उन्होंने कहा, “मानव को मानव से खिंचवाना अमानवीय था। ई-रिक्शा लाकर मैंने उस पीड़ा को समाप्त करने की कोशिश की।” गडकरी ने कहा कि उन्होंने निर्णय लेने का साहस रखा और ‘डेयरडेविल’ की तरह सोचते हैं। उन्होंने कहा, “अगर मैं ज्यादा सोचता, तो किसी ऑफिस में सरकारी नौकरी कर रहा होता। लेकिन मैं फैसले लेता हूं, वो मेरी कैपिटल है।”

‘कानून तोड़ना पड़े तो भी करूंगा 

उन्होंने 2014 में मंत्री बनने के समय का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने ठान लिया था कि अगर ई-रिक्शा लाने के लिए 10 बार भी कानून तोड़ना पड़े, तो वे पीछे नहीं हटेंगे। गडकरी ने कहा, “1 करोड़ लोग आज भी आदमी को आदमी से खिंचवा रहे थे। यह दीनदयाल उपाध्याय की सोच के खिलाफ है। इसे खत्म करना मेरी प्राथमिकता थी।”उन्होंने देहरादून में मिलने वाली 13वीं डिलीट की बात भी साझा की और कहा कि वे खुद को डॉक्टर कहने के हकदार नहीं मानते। गडकरी का ये आत्मस्वीकृति भरा बयान राजनीति में दुर्लभ है।

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