Karwa Chauth:करवा चौथ (Karwa Chauth) का पर्व सनातन धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह दिन पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन की कामना के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व का महत्व न केवल उपवास में है, बल्कि इसे संध्या काल में चंद्रमा के दर्शन और पूजा के साथ भी जोड़ा जाता है।
इस बार करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रविवार, 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। महिलाओं द्वारा इस दिन निराहार व्रत का पालन किया जाता है, और शाम को चंद्र दर्शन के बाद अपने इष्ट देव और शिव परिवार की पूजा की जाती है। करवा चौथ के इस खास अवसर पर पूजा का मुहूर्त और चंद्रोदय का समय जानना भी महत्वपूर्ण है।
महिलाओं के लिए साज-सज्जा का पर्व
विवाह के ठीक बाद पहले करवा चौथ के व्रत के दिन नव विवाहित महिलाओं में इस पर्व को लेकर खास उत्साह रहता है। सुहागिन महिलाओं के लिए भी यह पर्व उतना ही महत्वपूर्ण होता है। पति की लंबी उम्र की कामना के लिए स्त्रियां कठिन व्रत रखती हैं। इस दिन करवा चौथ पूजन का मुहूर्त, चंद्र दर्शन और पूजा का विशेष महत्व है।
सूर्योदय से चंद्रदर्शन तक व्रत
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले भोर में शुरू होता है और चंद्रमा निकलने के बाद तक जारी रहता है। व्रती सुहागिन महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद छलनी में दीपक रखकर उसकी पूजा करती हैं। कई स्थानों पर छलनी से पति के चेहरे को देखने का रिवाज भी है। इसके बाद पति अपने हाथों से पत्नी को पानी पिलाते हैं, और तब महिलाएं भोजन करती हैं।
इष्ट के साथ शिव परिवार की पूजा
ज्योतिषाचार्य पं अक्षय शास्त्री के अनुसार, संध्याकाल में चंद्र दर्शन से पहले अपने इष्ट देव की पूजा के साथ ही शिव परिवार की पूजा का विधान है। मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करते हुए अखंड सुहाग की कामना की जाती है।