Congress party leadership struggle: राजस्थान की राजनीति में 25 सितंबर का दिन हमेशा से महत्वपूर्ण और विवादास्पद रहा है। यह वही तारीख है जब 2020 में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच राजनीतिक खींचतान ने एक नई दिशा ली। यह संघर्ष न केवल प्रदेश की राजनीति में हलचल लाया, बल्कि कांग्रेस पार्टी के भीतर भी गहरे अंतर्विरोधों को उजागर किया।
मानेसर एपिसोड: बगावत का आगाज
सबसे पहले, 12 जुलाई 2020 को यह घटनाक्रम शुरू हुआ, जब सचिन पायलट और उनके समर्थक 19 विधायकों ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत का ऐलान किया। ये विधायक मानेसर के एक रिसॉर्ट में चले गए, जिसके बाद गहलोत सरकार के अल्पमत में होने का दावा किया जाने लगा। इस ‘मानेसर एपिसोड’ ने स्पष्ट किया कि गहलोत और पायलट के बीच मतभेद गहरे हो चुके हैं।
25 सितंबर 2022: एक नया संकट
फिर, दो साल बाद, 25 सितंबर 2022 को, जब आलाकमान के निर्देश पर मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन जैसे पर्यवेक्षक जयपुर आए थे, तब एक नया संकट गहराने लगा। इन पर्यवेक्षकों का लक्ष्य विधायकों की बैठक करना था। लेकिन इसी बीच, सत्तारूढ़ दल के 82 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। यह घटनाक्रम गहलोत खेमे के लिए एक नई चिंता का विषय बन गया।
बैठक का महत्व और विधायकों का इस्तीफा
गहलोत खेमे में इस इस्तीफे ने हलचल मचा दी। आलाकमान की बैठक के समानांतर एक और बैठक बुलाई गई, जिसमें सीपी जोशी ने 81 विधायकों के इस्तीफे लेकर जाने का निर्णय लिया। इस घटनाक्रम में गहलोत के तीन खास नेताओं, शांति धारीवाल, महेश जोशी, और धर्मेंद्र राठौड़ की भूमिका महत्वपूर्ण थी। विधायकों के इस्तीफे से यह स्पष्ट हो गया कि गहलोत खेमे में असंतोष की लहर चल रही थी।
गहलोत का अध्यक्ष बनने का प्रयास
इस घटनाक्रम से पहले, 8 अक्टूबर 2022 को कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे को चुना गया। गहलोत इस पद के लिए एक संभावित दावेदार थे। पार्टी हाईकमान राजस्थान में गहलोत के उत्तराधिकारी की तलाश कर रहा था। गहलोत खेमे के विधायकों का मानना था कि पहले गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने दिया जाए, उसके बाद ही आलाकमान जो भी निर्णय ले, वह स्वीकार होगा।
पायलट खेमा का दबाव
पायलट खेमा यह जानता था कि यदि गहलोत पार्टी अध्यक्ष बन जाते हैं, तो स्थिति उनके हाथ से निकल सकती है। ऐसे में, गहलोत समर्थक विधायकों का कहना था कि बगावत करने वाले 19 विधायकों में से किसी को भी सीएम नहीं बनाया जाना चाहिए, और उनका निशाना सचिन पायलट ही थे।
प्रताप सिंह खाचरियावास का बयान
इस बीच, पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि यदि गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनते हैं, तो सीएम बदलने की बात हो सकती है। उन्होंने विधायकों की संख्या को लेकर कहा कि गहलोत को विधायकों की सलाह पर ध्यान देना चाहिए।
गहलोत और सोनिया गांधी की मुलाकात
कुछ दिन बाद, गहलोत ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की। उन्होंने अध्यक्ष पद की दौड़ में आगे बताए जाने के बाद यह ऐलान किया कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेंगे। गहलोत ने कहा कि जब उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद डोटासरा को विधायकों को समझाने के लिए भेजा, तो वे (इस्तीफा देने वाले विधायक) नाराज थे।
पायलट का रिएक्शन
सचिन पायलट ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यदि बैठक हो जाती तो शायद परिणाम कुछ और होते।” उन्होंने यह भी कहा कि विधायकों से संवाद करना बेहद आवश्यक था। उनके अनुसार, अगर विधायकों की बैठक सफल होती, तो यह स्थिति को बेहतर बना सकती थी।
गहलोत का राजनीति में भविष्य
राजनीति के इस उतार-चढ़ाव के बीच, गहलोत का भविष्य भी संदेह में आ गया है। क्या वह फिर से सीएम पद पर लौटेंगे या सचिन पायलट को मौका मिलेगा? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।
निष्कर्ष
राजस्थान की राजनीति में यह घटनाक्रम न केवल गहलोत और पायलट के बीच की खींचतान को उजागर करता है, बल्कि यह कांग्रेस पार्टी के भीतर की गहराई तक जाने वाली राजनीति का भी संकेत है। 25 सितंबर की तारीख हमेशा से ही राजस्थान की राजनीति में महत्वपूर्ण रह चुकी है और आगे भी यह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।