Nuclear Weapons: भारत में परमाणु हथियार किसी एक व्यक्ति के पास नहीं होते—NCA, स्मार्ट कोड और कई सुरक्षा‑लेयर मिलकर ही किसी भी लॉन्च को संभव बनाते हैं। ‘नो फर्स्ट यूज़’ पॉलिसी और पूरी प्रक्रिया यहाँ संक्षेप में।
दुनिया में कुछ ही देश परमाणु संपन्न हैं—रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया। इजरायल भी आमतौर पर (Nuclear Weapons)न्यूक्लियर‑पावर माना जाता है पर उसने आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया। भारत के पास अनुमानित 172 परमाणु हथियार हैं—जो पाकिस्तान से लगभग दो अधिक बताए जाते हैं।
क्या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पास कोई “परमाणु बटन” होता है?
फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि किसी समय किसी नेता के डेस्क पर एक बड़ा बटन होता है—लेकिन वास्तविकता अलग है। किसी भी आधुनिक लोकतांत्रिक देश में ऐसा सीधा बटन नहीं होता जिससे कोई भी तुरंत परमाणु हमला कर सके। भारत में भी परमाणु हथियार‑लॉन्च का फैसला एक व्यक्ति के हाथ में नहीं है; इसे कई संस्थागत और सुरक्षा‑लेयर के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।
नियंत्रण का केंद्र
भारत में परमाणु हथियारों के उपयोग का अंतिम निर्णय न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (NCA) लेती है। NCA के दो प्रमुख अंग हैं:
- राजनीतिक परिषद (Political Council): जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं—यह परमाणु नीति और उच्च‑स्तरीय निर्णयों का राजनीतिक प्लेटफ़ॉर्म है।
- कार्यकारी परिषद (Executive Council): जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) करते हैं—यह रणनीतिक और तकनीकी सिफारिशें देता है।
इन दोनों परिषदों की सहमति और आदेश के बिना किसी भी प्रकार का लॉन्च नहीं हो सकता।
क्या भारत की ‘नो फर्स्ट यूज़’ नीति है?
हाँ—भारत की परमाणु नीति ‘नो फर्स्ट यूज़’ (No First Use) पर आधारित है। इसका मतलब है कि भारत पहला परमाणु हमला नहीं करेगा; परमाणु हथियार केवल खुद की रक्षा के लिहाज़ से और जब उस पर परमाणु हमला हो तभी उपयोग किए जाएंगे।
लॉन्च प्रक्रिया — ब्रीफकेस, स्मार्ट कोड और सेफ‑कोड्स
परमाणु हमला शुरू करने की प्रक्रिया कई सुरक्षा‑लेयर से गुजरती है:
- परमाणु ब्रीफकेस: प्रधानमंत्री के पास एक ब्रीफकेस होता है जिसमें कम्युनिकेशन डिवाइस, लक्ष्यों की सूची और एक डिजिटल इंटरफेस शामिल होते हैं।
- स्मार्ट कोड: प्रधानमंत्री का निजी कोड कमांड‑कैंप तक भेजा जाता है—लेकिन यही एक‑दूसरा कोड नहीं है।
- दो अतिरिक्त सेफ‑कोड्स: सेना के शीर्ष अधिकारियों के पास अलग‑अलग लॉकरों में रखे जाते हैं। इनकोड्स का स्थान सार्वजनिक नहीं होता।
- तीन कोड्स का मिलान: केवल तभी हमला प्रमाणित होता है जब प्रधानमंत्री के स्मार्ट कोड और दोनों सेफ‑कोड सही तरीके से मिलान हों।
तकनीकी तैयारियाँ और DRDO की भूमिका
तीनों कोड मिल जाने के बाद भी हमले की तैनाती और निष्पादन के लिए वायुसेना, नौसेना और थलसेना को समय चाहिए—लड़ाकू विमानों की तैयारी, मिसाइल की तैनाती या परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती जैसी कार्रवाइयाँ तकनीकी व लॉजिस्टिक रूप से जटिल हैं।
DRDO (डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) इन प्रणालियों की तकनीकी देखरेख करता है—जिसमें हथियारों की तैयारी, कम्युनिकेशन नेटवर्क और परमाणु‑सक्षम प्लेटफ़ॉर्म की सुरक्षा शामिल है।
सुरक्षा, जवाबदेही और पारदर्शिता
भारत की प्रणालियाँ इस बात को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं कि निर्णय संस्थागत, बहु‑स्तरीय और नियंत्रित हों—ताकि किसी एक व्यक्ति की गलती या अनैतिक निर्णय से परमाणु गतिवधियों का दुरुपयोग न हो। राजनीतिक परिषद के नेतृत्व में नीति‑निर्धारण और कार्यकारी परिषद की तकनीकी सिफारिशें इस प्रणाली को संतुलित रखती हैं।

































































