International Anti-Corruption Day: अक्सर कहा जाता है कि बाहर पड़ा काला धन वापस आ जाए तो कोई भी भूखा नहीं सोएगा। मगर जब उन जिम्मेदारों पर आरोप आते हैं जो देश के विकास के ठेकेदार होते हैं, तो यह सवाल और तीखा हो जाता है। नीचे कुछ ऐसे नेताओं और मामलों का (International Anti-Corruption Day)संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है जो देश के राजनीतिक इतिहास में विवादों और सज़ाओं के रूप में दर्ज हैं।
प्रमुख मामलों का सार
लालू प्रसाद यादव — चारा घोटाला
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिया गया था; रांची की विशेष CBI अदालत ने उन्हें इस मामले में सजा सुनाई और लाखों-करोड़ों के गबन से जुड़े आरोपों का निचोड़ सामने आया। अदालत द्वारा लगाई गई राशि और सज़ा संबंधित आदेशों में विस्तार से दर्ज है।
जयललिता (पूर्व मुख्यमंत्री) — आय से अधिक संपत्ति
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को 2014 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी पाया गया; अदालत ने उन्हें चार साल की सज़ा और जुर्माना लगाया था। मामला 66 करोड़ रुपये से अधिक अज्ञात स्रोत की संपत्ति जुड़ने का था।
एन. चंद्रबाबू नायडू — कौशल विकास घोटाला आरोप
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू को 2023 में भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था; उन पर कौशल विकास परियोजनाओं में अनियमितताओं के आरोप थे और मामले में कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ी।
अरविंद केजरीवाल — आबकारी नीति/शराब पॉलिसी विवाद
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आबकारी नीति घोटाले के संदर्भ में 2024 में गिरफ्तारी और ED/CBI जांच हुई। विपक्षी और न्यायिक समीक्षाओं के बाद प्रकरण में कानूनी झड़पें जारी रहीं; बाद में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली।
जगन्नाथ मिश्र — चाइबासा कोषागार घोटाला
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को चाइबासा कोषागार से जुड़ा घोटाला होने के चलते दोषी पाया गया; मामले में 37 करोड़ रुपये से अधिक के अनियमितताओं का उल्लेख है।
पार्थ चटर्जी — SSC भर्ती घोटाला
पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी SSC भर्ती घोटाले में मुख्य आरोपी रहे; उन्हें 2022–2023 के दौरान ED/अन्य एजेंसियों ने गिरफ्तार किया और कानूनी प्रक्रिया आगे चली।
साइडिकुल्ला (पश्चिम बंगाल के मंत्री) — PDS घोटाला
PDS (Public Distribution System) घोटाले के सिलसिले में साइडिकुल्ला पर भी जांचें हुईं; कुछ मामलों में ED की कार्रवाई और गिरफ्तारी की खबरें आईं, और अनुमानित नुकसान बड़ी राशियों में बताया गया।
सुदीप्ता रॉय / सारदा चिटफंड घोटाला
सारदा चिटफंड (शारदा समूह) के पोंजी स्कीम से जुड़ा मामला 2013–2014 में उठा; आरोपों के अनुसार निवेशकों की करोड़ों की बचत प्रभावित हुई और कई मामलों में हिंसक परिणाम भी सामने आए। पूछताछ व गिरफ्तारी की प्रक्रिया चली।
हालिया पहल: संविधान (130वाँ संशोधन) बिल
20 अगस्त 2025 को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में संविधान (130वाँ संशोधन) बिल पेश किया। इस बिल के मसौदे के अनुसार यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन से अधिक जेल में सजा काटता है तो उसे 31वें दिन अपने पद से इस्तीफा देना अनिवार्य होगा। सरकार इसे सुशासन और नैतिकता से जोड़कर प्रस्तुत कर रही है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक औजार बताने की चिंता जता रहा है। बिल को आगे के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है।
नोट: यह विधेयक विधायी प्रक्रिया में है; अंतिम परिणाम और नियमों का दायरा संसद के निर्णय पर निर्भर करेगा।
भारत के अब तक के 10 सबसे बड़े घोटाले (संक्षेप)
- 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2008) — CAG के अनुमानों में बड़े आर्थिक नुकसान और दूरसंचार लाइसेंस आवंटन में अनियमितताएँ।
- कोयला ब्लॉक्स (कोलगेट) घोटाला (2012) — कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताएँ; आर्थिक प्रभाव बड़ा बताया गया।
- कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG) घोटाला (2010) — आयोजन से जुड़ी खरीद में भ्रष्टाचार; राजनीतिक प्रभाव भी पड़ा।
- बिहार चारा घोटाला (1996) — पशु चारे के नाम पर फर्जी बिल और गबन; लालू प्रसाद यादव से जुड़ा प्रमुख मामला।
- बैंक धोखाधड़ी / NPAs (नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या) — बड़े बैंक फ्रॉड और LoU/विवादों से जुड़ी रकम।
- नीरव मोदी–मेहुल चौकसी बैंक धोखाधड़ी (2018) — PNB LoU फ्रॉड; करोड़ों का वित्तीय घाटा।
- बोफोर्स घोटाला (1987) — अंतरराष्ट्रीय रिश्वत से जुड़ा विवाद, राजनीतिक हलचल।
- हरियाणा भूमि / वाड्रा-डीएलएफ विवाद (2012) — भूमि सौदे और लाभ से जुड़ी अनियमितताएँ।
- NRHM घोटाला – उत्तर प्रदेश (2010) — स्वास्थ्य योजनाओं में बड़ी खरीद/खर्च में अनियमितताएँ।
- सत्यम कॉर्पोरेट घोटाला (2009) — कंपनी खातों में हेरफेर; रामलिंगा राजू से जुड़ा मामला।
क्यों यह मुद्दा है अहम?
जब सार्वजनिक संसाधनों और विकास योजनाओं में गड़बड़ी होती है, तो न केवल राजकीय धन का नुकसान होता है, बल्कि आम जनता का विश्वास भी डिगता है। नेताओं और अधिकारियों पर आरोप सिद्ध होने पर कानूनी सज़ाएँ, राजनीतिक प्रतिफल और नीति-परिवर्तन दोनों दिखते हैं। इसलिए पारदर्शिता, जवाबदेही और कड़े नियामक तंत्र का होना जरूरी है।

































































