कैसे हुआ पर्दाफाश?
RPF को स्टेशन पर संदिग्ध गतिविधियों की सूचना मिली थी। सूचना मिलते ही चाइल्ड लाइन के समन्वयक मेहुल शर्मा की टीम, GRP और सृष्टि सेवा संस्थान के सदस्यों ने मौके पर पहुंच कर छानबीन की। बच्चों को ले जा रहे एजेंटों ने मौके पर भागने का प्रयास किया, लेकिन टीम ने तीनों एजेंटों — जयचंद, आशीष और संजय — को दबोच लिया। शुरुआती पूछताछ में एजेंट बच्चों को ‘पिकनिक’ बता कर बचाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे, पर अलग-अलग पूछताछ में बच्चों ने एजेंटों को ‘अंकल’ बताते हुए सच्चाई उजागर कर दी।
रेस्क्यू आंकड़े
कुल मिलाकर स्टेशन से 27 लोगों को रेस्क्यू किया गया, जिनमें से 22 नाबालिग पाए गए। जांच में पता चला कि दलाल दूरदराज के गांवों — झोथरी, बेडसा, सीमलवाड़ा और मेवाड़ा — से इन बच्चों को बहला-फुसला कर ले आए थे।
शोषण का तरीका और जोखिम
एजेंटों ने स्वीकार किया कि बच्चों को आयोजनों, पार्टियों और होटलों में कैटरिंग व अन्य शारीरिक मेहनत वाले कामों में लगाया जाना था। ऐसे कार्यों में लंबे घंटे खड़े रहना, भारी सामान उठाना और अनुचित परिस्थितियों में काम करना शामिल है — जो बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। यह सीधे-सीधे बाल श्रम और शोषण का मामला है।
मुक्त किए गए बच्चों को तुरंत बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष पेश किया गया। CWC ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी 22 नाबालिगों को तत्काल चाइल्ड केयर होम भेजने के निर्देश दिए, ताकि उनकी शारीरिक देखभाल, चिकित्सा और सामाजिक पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके। साथ ही तीनों एजेंटों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और गहन जांच के निर्देश भी जारी किए गए हैं।
प्रशासनिक और समाजिक कदम
- स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा मामलों की फॉरेंसिक व पेरेंटल ट्रेसिंग शुरू की जाएगी।
- Childline और NGOs द्वारा प्रभावित परिवारों को संवैधानिक सहायता और जागरूकता कार्यक्रमों की पेशकश की जाएगी।
- जांच में यह भी देखा जाएगा कि बच्चों को ले जाने के पीछे किसी बड़े नेटवर्क का हाथ तो नहीं।

































































