Rajasthan News: श्री सांवलियाजी मंदिर में चढ़ावे के रूप में 58 किलो अफीम जब्त होने के बाद यह परंपरा एक बार फिर चर्चा में आ गई है। यह अफीम पिछले कुछ वर्षों में चढ़ावे के रूप में जमा हुई थी। मेवाड़ और मालवा क्षेत्र के किसान, (Rajasthan News)अफीम की अच्छी फसल होने पर भगवान सांवरा सेठ को आभार स्वरूप इसका कुछ हिस्सा चढ़ाते हैं। किसान आमतौर पर कैश और अन्य भेंट के साथ प्लास्टिक की थैलियों में अफीम मंदिर के भंडार में जमा कराते हैं। यह परंपरा काफी समय से चली आ रही है, लेकिन अब इस पर कानूनी सवाल खड़े हो रहे हैं।
अफीम को प्रसाद के रूप में दिया जाता था
कई वर्षों तक इस चढ़ावे की अफीम को मंदिर के पुजारियों द्वारा स्वयं उपयोग किया जाता था और साथ ही विशेष भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता था। इस परंपरा को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे थे, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। बाद में मंदिर प्रशासन ने इसे नियंत्रित करने के लिए चढ़ावे में आई अफीम को सुरक्षित रखने का फैसला किया और इसे तहखाने में रखना शुरू कर दिया।
RTI शिकायत के बाद हरकत में आया प्रशासन
इस मामले को लेकर लंबे समय से शिकायतें की जा रही थीं, लेकिन जब एक RTI कार्यकर्ता ने नारकोटिक्स विभाग को पत्र लिखकर इसकी जानकारी मांगी, तब प्रशासन हरकत में आया। इसके बाद नीमच, मंदसौर और प्रतापगढ़ से आई नारकोटिक्स विभाग की दो टीमों ने मंदिर में छापेमारी की। गर्भगृह के नीचे बने तहखाने से 58 किलो अफीम बरामद की गई। जांच के दौरान इलेक्ट्रॉनिक कांटे लाकर अफीम का वजन किया गया और करीब चार घंटे तक चली कार्रवाई के बाद इसे सीज कर लिया गया।
ADM प्रभा गौतम ने नहीं दी कोई जानकारी
इस पूरी कार्रवाई के दौरान मंदिर प्रशासन और स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठने लगे हैं। कार्रवाई के वक्त अतिरिक्त जिला कलेक्टर (ADM) प्रभा गौतम भी मौजूद थीं, लेकिन उन्होंने किसी भी तरह की जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि इस मामले में सिर्फ नारकोटिक्स विभाग ही अधिकृत रूप से बयान देगा।
भविष्य में पुलिस की निगरानी में होगा अफीम का प्रबंधन
इस घटना के बाद मंदिर प्रशासन ने भविष्य में हर चतुर्दशी पर पुलिस की निगरानी में भंडार से निकलने वाली अफीम को तौलकर पुलिस को सौंपने का फैसला लिया है। इससे मंदिर में अफीम के भंडारण और इसके गलत इस्तेमाल की संभावनाओं को खत्म किया जा सकेगा।
क्या अब बदलेगी परंपरा?
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या धार्मिक स्थलों पर इस तरह के चढ़ावे की अनुमति दी जानी चाहिए? क्या यह परंपरा जारी रहेगी या प्रशासन इसे रोकने के लिए कोई सख्त कदम उठाएगा? अफीम की खेती और इसका धार्मिक महत्व एक लंबी बहस का मुद्दा बन सकता है, लेकिन नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई ने इस प्रथा को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।