Bangladesh Military: बांग्लादेश की राजधानी ढाका और अन्य प्रमुख शहरों में इन दिनों असामान्य सैन्य गतिविधियों की तस्वीरें सामने आ रही हैं। (Bangladesh Military)टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों और सैनिकों की खुली तैनाती ने देश की राजनीतिक स्थिति को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।पिछले एक महीने में 10,000 से अधिक गिरफ्तारियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि देश एक अस्थिर दौर से गुजर रहा है।
बांग्लादेश सेना की मीडिया शाखा ISPR (Inter-Services Public Relations) के अनुसार, केवल 15 मई से अब तक एक सप्ताह में 258 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। फरवरी से अप्रैल के बीच यह आंकड़ा 2,457 था, और अप्रैल मध्य तक और 2,000 लोग हिरासत में लिए जा चुके हैं।
सेना की भूमिका पर सवाल
सेना का दावा है कि यह कदम संभावित उपद्रवों की रोकथाम और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया है। लेकिन ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट्स बताती हैं कि राजधानी में सेना के टैंक और जीपों की गश्त आम लोगों में भय का माहौल पैदा कर रही है।
यह सारी कार्रवाई बांग्लादेश की वर्तमान अंतरिम सरकार के कार्यकाल में हो रही है, जिसकी कमान प्रो. मोहम्मद यूनुस के हाथों में है। अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद यह सरकार अस्तित्व में आई थी। तब से देश में राजनीतिक शून्यता और अस्थिरता का माहौल बना हुआ है।
हालांकि यूनुस सरकार को तटस्थ माना जा रहा है, लेकिन राजनीतिक दलों के बीच गहरा अविश्वास और सरकार की अस्थिरता ने हालात को और जटिल बना दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स में उनके इस्तीफे की अटकलें भी लगाई जा रही हैं।
लोकतंत्र बनाम सैन्य निगरानी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सेना की सक्रियता और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां आगामी आम चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर सकती हैं।
कुछ नागरिक अधिकार संगठनों ने भी चेतावनी दी है कि यह कदम कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक असहमति को दबाने का प्रयास न बन जाए।
वहीं, सरकार समर्थक गुटों का कहना है कि देश को किसी भी तरह की अराजकता से बचाने के लिए यह कदम जरूरी था। एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा, “हम नहीं चाहते कि 2023 जैसी स्थिति दोबारा हो, जब विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गए थे।”
देश को आर्थिक संकट, बेरोजगारी और राजनीतिक अनिश्चितता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में बांग्लादेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखते हुए नागरिक अधिकारों की रक्षा करना है। विशेषज्ञों का मानना है कि सेना की उपस्थिति केवल अस्थायी समाधान है। स्थायी समाधान पारदर्शी संवाद और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से ही संभव हो सकेगा।