भारत-अमेरिका व्यापार में भूचाल! 50% टैरिफ आज से लागू…. कौन-कौन से सेक्टर होंगे प्रभावित? पूरी रिपोर्ट पढ़ें

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India US Tariff

India US Tariff: अमेरिका ने 27 अगस्त से भारत से आयातित कई वस्तुओं पर लागू टैरिफ में बड़ा इजाफा कर दिया है। पहले जो अतिरिक्त शुल्क कुल मिलाकर ~25% था, उसे बढ़ाकर अब कुल 50% कर दिया गया है। अमेरिकी Department of Homeland Security ने इस संबंध में (India US Tariff) भारत को नोटिस जारी कर दिया है।

किस-किस सेक्टर पर टैरिफ बढ़ा?

  • टेक्सटाइल एवं गारमेंट्स: कपड़ों पर टैरिफ 9% → 59%, रेडीमेड पर 13.9% → 63.9% — तिरुपुर, सूरत, लुधियाना, मुंबई प्रभावित केंद्र।
  • मेटल सेक्टर: स्टील, एल्युमिनियम, कॉपर पर 1.7% → 51.7%.
  • फर्नीचर और बेडिंग: 2.3% → 52.3%.
  • सीफ़ूड (Shrimps): पहले शून्य, अब 50% टैरिफ लागू।
  • ज्वेलरी और प्रेशियस मेटल्स: हीरे-सोने पर 2.1% → 52%.
  • मशीनरी/मैकेनिकल सामान: 1.3% → 51.3%.
  • ऑटो सेक्टर: वाहनों और स्पेयर पार्ट्स पर अलग गणना के बाद कुल ~26% शुल्क बरकरार रहेगा।

अमेरिकी बाजार में भारत का दबदबा घटेगा

अमेरिका भारत का एक प्रमुख निर्यात साझेदार है — भारतीय कुल निर्यात का लगभग 18% अमेरिकी बाजार को जाता है। नए 50% टैरिफ के बाद भारतीय माल वहां महंगा हो जाएगा, जिससे चीनी और दक्षिण-पूर्व एशियाई प्रतिस्पर्धी देशों (चीन, वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया, फिलीपीन) को लाभ मिलने की संभावना है।

अन्य देशों पर कितने टैरिफ रखे गए?

  • चीन: 30%
  • वियतनाम: 20%
  • बांग्लादेश: 20%
  • कंबोडिया: 19%
  • फिलीपींस: 19%

निर्यातकों की सरकार से मांगें….FIEO का रुख

Federation of Indian Export Organisations (FIEO) ने केंद्र सरकार से तत्काल राहत और नीतिगत कदम मांगे हैं ताकि अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम किया जा सके:

  • छोटे व्यवसायों और MSMEs को तुरंत आर्थिक सहायता और सस्ती क्रेडिट सुविधा।
  • ब्याज व मूलधन चुकौती पर कम से कम 1 वर्ष की राहत
  • प्रभावित कंपनियों के लिए बिना गारंटी के लोन और आसान ऋण।
  • यूरोपीय यूनियन, ओमान, चिली, पेरू, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट को जल्द पूरा करना।
  • ‘ब्रांड इंडिया’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने के लिए ब्रांड प्रमोशन व मार्केटिंग सहायता।

आगे की चुनौतियाँ और संभावित नीतिगत कदम

नए टैरिफ से प्रभावित उद्योगों को कीमतों, लाभ मार्जिन और बाजार हिस्सेदारी में तीव्र प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार सरकार के पास विकल्प हैं — उल्टी टैरिफ वार्ता, द्विपक्षीय संवाद, लक्षित सब्सिडी, निर्यात-सहायता पैकेज और वैकल्पिक बाजारों की खोज— ताकि रोज़गार और निर्यात आधार पर असर न्यूनतम किया जा सके।

 

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