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Tuesday, December 2, 2025

दहेज से पवित्र विवाह ‘व्यापार’ बना, सुप्रीम कोर्ट का कड़ा सवाल—क्या इंसानों की कीमत अब लालच तय करेगा?

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Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चिंता जताते हुए कहा कि विवाह एक पवित्र और महान संस्था है, जो आपसी विश्वास, साथी का साहचर्य और सम्मान पर आधारित होती है। (Supreme Court)लेकिन दहेज की बुराई के कारण यह पवित्र बंधन दुर्भाग्यवश एक व्यावसायिक लेन‑देन में बदल गया है।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि दहेज हत्या केवल एक व्यक्ति के खिलाफ अपराध नहीं है, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ एक घिनौना अपराध है।

मामले का परिप्रेक्ष्य

कोर्ट ने यह टिप्पणी उस आपील पर दी जिसमें आरोपी ने शादी के केवल चार महीने बाद ही अपनी पत्नी को दहेज के लिये जहर देने का आरोप झेला। उच्च न्यायालय द्वारा आरोपी को जमानत देने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने ‘प्रतिकूल और अव्यावहारिक’ बताया, क्योंकि उस आदेश में कई गंभीर तथ्यों और मृतक के पहले दिए पुष्ट बयानों को नज़रअंदाज़ किया गया था।

दहेज: उपहार नहीं, सामाजिक बुराई

पीठ ने कहा कि दहेज को अक्सर उपहार या स्वैच्छिक दान के रूप में छिपाने की कोशिश की जाती है, मगर वास्तविकता यह है कि दहेज सामाजिक प्रतिष्ठा दिखाने और भौतिक लालच को शांत करने का साधन बन गया है। यह प्रथा महिलाओं के व्यवस्थित उत्पीड़न और पराधीनता को बढ़ावा देती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज हत्या ‘‘समाजिक कुप्रथा की सबसे घृणित अभिव्यक्तियों में से एक’’ है — जहाँ एक युवा लड़की का जीवन ही उसके ससुराल में खत्म कर दिया जाता है, और वह भी केवल दूसरों की अतृप्त लालसा को संतुष्ट करने के लिए।

संवैधानिक दृष्टिकोण

पीठ ने यह भी कहा कि दहेजहत्या और ऐसे जघन्य अपराधों से मानव गरिमा को चोट पहुँचती है और यह आर्टिकल 14 (समानता) और आर्टिकल 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के अंतर्गत संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।

 

 

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