क्यों 364 दिन राम और एक दिन कृष्ण बनते हैं भगवान? जानिए अद्भुत परंपरा की कहानी”

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Shree Krishna Janmashtami 2025

Shree Krishna Janmashtami 2025: लक्ष्मणगढ़ के श्रीरघुनाथजी के बड़े मंदिर में जन्माष्टमी पर ऐसी परंपरा निभाई जाती है जो अवतारों की एकता का संदेश देती है। वर्ष के 364 दिन जिन श्रीविग्रहों की पूजा भगवान श्रीराम के रूप में होती है, ( Shree Krishna Janmashtami 2025 ) जन्माष्टमी के दिवस पर वही विग्रह भगवान श्रीकृष्ण के रूप में अलंकृत किए जाते हैं। महंत अशोक रघुनाथदास महाराज बताते हैं…धनुष-बाण हटाकर हाथों में बांसुरी धारण कराई जाती है और मुकुट के स्थान पर मोरपंख मुकुट सुशोभित किया जाता है।

परंपरा का अर्थ: राम और कृष्ण—अंतर नहीं, एकत्व का संदेश

मंदिर परंपरा का मूल यह मान्यता है कि श्रीराम और श्रीकृष्ण, दोनों विष्णु के अवतार हैं—धर्मग्रंथों में इनमें भेद का कोई आग्रह नहीं। इसी कारण जन्माष्टमी को राम-विग्रह को कृष्ण-स्वरूप देकर अवतार-एकत्व का महोत्सव मनाया जाता है। जन्मोत्सव के बाद श्रीविग्रहों को पुनः गर्भगृह में विराजमान कर बाल-रूप श्रीकृष्ण की मनोहर झांकी सजाई जाती है; इनके लिए विशेष वृंदावन से आई पोशाक धारण कराई जाती है।

आज का कर्मक्रम: महाआरती, पुष्पवर्षा और प्रसाद-वितरण

महाआरती व पुष्पवर्षा: जन्मोत्सव के बाद आरती के दौरान निरंतर पुष्पवर्षा होगी।
भोग: पंजीरी, पेड़ा, पंचामृत सहित विविध नैवेद्य का भोग लगाकर आरती की जाएगी।
भक्त-उपहार उछाल: परंपरा अनुसार भक्तों द्वारा लाए गए खिलौनों आदि की उछाल की रस्म होगी।
प्रसाद-वितरण: कार्यक्रम में उपस्थित सभी भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाएगा।
इतिहास: मंदिर और किले की संयुक्त नींव, शाही आस्था का केंद्र

1805 ई. में लक्ष्मणगढ़ का किला और रघुनाथजी मंदिर….दोनों की नींव साथ रखी गई थी। नगर संस्थापक राव राजा लक्ष्मण सिंह के संरक्षण में निर्माण हुआ और 1814 ई. में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई। शाही काल में राव राजा लक्ष्मण सिंह से लेकर अंतिम राव राजा कल्याण सिंह तक, जब भी राजपरिवार रामगढ़ आदि की यात्रा करता, बीच पड़ने पर लक्ष्मणगढ़ में दर्शन कर महंतों से रेशमी दुपट्टा व प्रसाद लेकर आगे बढ़ना परंपरा रही।

जन्माष्टमी की रात्रि विधि: 108 कलश अभिषेक और सहस्त्रधारा

जन्माष्टमी की संध्या मंदिर परिसर भजन-कीर्तन से गूंजता रहेगा—रात 8 बजे से 1 बजे तक भजनों की सरिता बहेगी। 9:00–11:00 बजे: श्रीविग्रहों को गर्भगृह से बाहर तांबे की बड़ी पारात में सहस्त्रधारा के नीचे विराजित कर 108 कलश से विभिन्न पूजासामग्रियों के साथ वैदिक पुरुष सूक्त मंत्रोच्चार द्वारा अभिषेक।

11:00 बजे के बाद: श्रीविग्रह पुनः गर्भगृह में प्रतिष्ठित, बाल-कृष्ण की आकर्षक झांकी सजाई जाएगी।
12:30 बजे: महाआरती एवं सतत पुष्पवर्षा।
मटकी-फोड़: बाल-रूप श्रीकृष्ण की मटकी फोड़ परंपरा के साथ उल्लास-उत्सव।
सेवा-सौंदर्य: वृंदावन की पोशाक, बांसुरी और मोरपंख मुकुट

जन्माष्टमी पर श्रीविग्रहों को वृंदावन-निर्मित पोशाक से अलंकृत किया जाता है। धनुष-बाण का स्थान लेती है बांसुरी, और श्रीमुख पर मोरपंख मुकुट—यही अलंकरण भक्त-समुदाय को राम से कृष्ण के सहज रूपांतरण का आध्यात्मिक अनुभव कराता है।

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