Bihar Politics 2025: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर जबरदस्त सियासी बवाल खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग इसे नियमित प्रक्रिया बता रहा है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला और (Bihar Politics 2025)वंचित वर्गों के मताधिकार को खत्म करने की साजिश कह रहा है। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, जहां 10 जुलाई को सुनवाई होगी।
क्या है यह विवाद?
भारत निर्वाचन आयोग प्रत्येक चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट करता है। इस बार 22 वर्षों के बाद बिहार में यह प्रक्रिया विशेष रूप से गहन रूप में की जा रही है। लगभग 7.89 करोड़ वोटर्स के दस्तावेजों की जांच की जा रही है जिनमें आधार, जन्म प्रमाणपत्र, पुराने राशन कार्ड आदि शामिल हैं। आयोग का दावा है कि यह पारदर्शिता के लिए जरूरी है, लेकिन विपक्ष को मंशा पर संदेह है।
विपक्ष का आरोप: यह ‘वोटबंदी’ है
राजद, कांग्रेस और AIMIM जैसे विपक्षी दल इस प्रक्रिया को लोकतंत्र विरोधी बता रहे हैं।
- राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे ‘वोटबंदी’ कहा है।
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसे “नागरिकता प्रमाणन की आड़ में मताधिकार छीनने की कोशिश” करार दिया है।
विपक्ष की आपत्तियाँ
- समय की कमी: चुनाव नजदीक हैं, इतने बड़े स्तर की जांच निष्पक्ष रूप से असंभव।
- दस्तावेजों की पेचीदगी: ग्रामीण और कमजोर वर्गों के पास दस्तावेज नहीं हैं।
- दिशा-निर्देशों में भ्रम: पहले छूट की बात, फिर 25 जुलाई की समयसीमा तय।
- राजनीतिक दुर्भावना: खास समुदायों को मताधिकार से वंचित करने की आशंका।
तेजस्वी यादव का दावा है कि 2 से 4 करोड़ वोटर सूची से बाहर हो सकते हैं।
चुनाव आयोग का पक्ष
आयोग ने कहा है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य फर्जी नाम हटाना और वैध मतदाताओं को जोड़ना है। आयोग ने 24 जून को दिशा-निर्देश जारी किए थे और उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। एनडीए नेताओं का कहना है कि इससे वास्तविक वोट बैंक तैयार होगा।
सुप्रीम कोर्ट में मामला
विपक्ष ने कपिल सिब्बल, महुआ मोइत्रा और योगेंद्र यादव की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। वहीं अश्विनी उपाध्याय ने पूरे देश में इसी तरह की प्रक्रिया लागू करने की मांग की है।
अब 10 जुलाई की सुनवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं। फैसला बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।