भारत के इतिहास में मील का पत्थर…सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आदिवासी समाज के लिए अलग कानून लागू होंगे

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Supreme Court Decision

Supreme Court Decision: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 आदिवासी समुदायों पर लागू नहीं होता। (Supreme Court Decision)कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के उस निर्देश को रद्द कर दिया है, जिसमें आदिवासी क्षेत्रों में बेटियों को संपत्ति का अधिकार हिंदू कानून के अनुसार देने को कहा गया था।

 हाईकोर्ट का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का आदेश अधिनियम की धारा 2(2) के विपरीत है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में बेटियों को संपत्ति में अधिकार आदिवासी प्रथाओं की जगह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार दिया जाना चाहिए।

कानून क्या कहता है?

‘लाइव लॉ’ की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि —

“यह अधिनियम किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्य पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी कर ऐसा न कहे।”

इसका मतलब यह है कि केंद्र सरकार की अधिसूचना के बिना आदिवासी क्षेत्रों में हिंदू कानून लागू नहीं किया जा सकता।

 हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में अपील

मामला हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 2015 के एक निर्णय से जुड़ा था। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि राज्य के आदिवासी इलाकों में बेटियों को संपत्ति का अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत मिलना चाहिए, ताकि सामाजिक अन्याय और भेदभाव को रोका जा सके।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तिरिथ कुमार बनाम दादूराम (2024) मामले का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जनजातियों को इस अधिनियम से बाहर रखा गया है, और रीति-रिवाजों के अनुसार संपत्ति का उत्तराधिकार तय होगा।

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