अध्यादेश का मसौदा तैयार — क्या बदलने वाला है?
सरकारी सूत्रों का कहना है कि राज्य प्रशासन ने अध्यादेश का मसौदा तैयार कर लिया है। इसे शीघ्र ही कैबिनेट के पास भेजा जाएगा और संभव है कि आगामी शीतकालीन सत्र में विधानसभा में इसे पारित कराने के लिए रखा जाए। मसौदे में स्पष्ट किया गया है कि पंचायत चुनावों में भागीदारी के लिए बच्चों की संख्या अब रोक का कारण नहीं रहेगी।
क्यों बदला जा रहा है नियम?
सूत्रों के अनुसार इस परिवर्तन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा दिये गए सुझाव और स्थानीय स्तर पर आई कई शिकायतें हैं। विभाग को प्राप्त ज्ञापनों में तर्क दिया गया कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है, तो केवल स्थानीय चुनावों में यह भेदभाव क्यों होना चाहिए। शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने भी सार्वजनिक रूप से कहा कि कई ज्ञापनों के चलते सरकार इस पर पुनर्विचार कर रही है।
यह नियम कब और क्यों लागू हुआ था?
यह नियम 1994 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत की सरकार ने लागू किया था। तब इसे जनसंख्या नियंत्रण और सामाजिक नीतियों के हिस्से के रूप में पेश किया गया था। उस समय का तर्क था कि स्थानीय स्तर पर जनसंख्या प्रबंधन को बढ़ावा देना आवश्यक है।
ग्रामीण राजनीति पर क्या असर होगा?
यदि यह नियम हटता है, तो हजारों ऐसे व्यक्तियों को स्थानीय राजनीति में भाग लेने का अधिकार मिलेगा जो वर्तमान में अयोग्यता के कारण इससे वंचित थे। इससे न केवल उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने की संभावना है, बल्कि स्थानीय प्रतिनिधित्व का सामूहिक स्वरूप भी बदल सकता है। समर्थक इसे लोकतांत्रिक विस्तार मानते हैं, जबकि आलोचक कहते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण जैसे सार्वजनिक हितों की चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं।
अध्यादेश मसौदे के कैबिनेट अनुमोदन के बाद, उसे विधानसभा में लाया जा सकता है या तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए राज्यपाल को भेजा जा सकता है। विधायी प्रक्रिया पूरी होने तक कई राजनीतिक व सामाजिक बहसें चलने की संभावना है।
