न्याय की सीमा या विचारों की स्वतंत्रता? जस्टिस यादव की स्पीच से संसद-सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने!

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Justice Shekhar Yadav

Justice Shekhar Yadav: इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव एक बार फिर चर्चाओं के केंद्र में हैं। 8 दिसंबर 2024 को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिए गए उनके भाषण ने न केवल सामाजिक और राजनीतिक(Justice Shekhar Yadav) हलकों में हलचल मचाई, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों को लेकर गहरे सवाल खड़े कर दिए।

विवादास्पद भाषण और वायरल वीडियो

अपने भाषण में जस्टिस यादव ने कहा था कि “भारत को बहुसंख्यकों की इच्छानुसार चलना चाहिए” और दावा किया कि “केवल एक हिंदू ही भारत को विश्वगुरु बना सकता है।” उन्होंने मुस्लिम समुदाय की प्रथाओं जैसे ट्रिपल तलाक और हलाला की आलोचना करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की वकालत की थी। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और तत्काल राजनीतिक और सामाजिक आलोचना शुरू हो गई।

महाभियोग प्रस्ताव और राजनीतिक प्रतिक्रिया

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के नेतृत्व में 55 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव दायर किया। राजनीतिक दलों, वरिष्ठ वकीलों और सामाजिक संगठनों ने इस बयान को न्यायिक गरिमा और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और इन-हाउस जांच

10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में रिपोर्ट तलब की। 17 दिसंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस संजय खन्ना और कॉलेजियम के चार अन्य न्यायाधीशों ने बंद कमरे में जस्टिस यादव से चर्चा की। वहां उन्होंने सार्वजनिक माफी का संकेत दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने माफी से इनकार कर दिया और अपने बयान पर कायम रहे।

जनवरी में पत्र और रुख पर अडिगता

जनवरी 2025 में जस्टिस यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अपने भाषण का बचाव किया। उन्होंने कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और यह संविधान की मूल भावना के अनुरूप सामाजिक चिंता की अभिव्यक्ति थी। उन्होंने इसे न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन मानने से इंकार कर दिया।

महाभियोग के चलते सुप्रीम कोर्ट की जांच पर विराम

मार्च 2025 में राज्यसभा सचिवालय से सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया कि 13 दिसंबर को पहले ही महाभियोग प्रस्ताव दायर किया जा चुका है। इसलिए यह मामला अब संसद के अधीन है और सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच प्रक्रिया संवैधानिक टकराव उत्पन्न कर सकती है। इसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जांच रोक दी और कॉलेजियम के सदस्यों को सूचित किया।

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