US-Pakistan Relations: भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में बोलते हुए जयशंकर ने अमेरिका की हालिया नीतियों और ( US-Pakistan Relations)पाकिस्तान के प्रति उसके रुख को लेकर सवाल उठाए।
अमेरिका के इतिहास को भुलाने की कोशिश
जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका अपने ही इतिहास को भूल रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने विश्व के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को शरण दी थी।
उन्होंने कहा, “आज जो देश पाकिस्तान को ‘सर्टिफिकेट’ दे रहे हैं, वही देश कभी उसकी सरहदों में घुसकर एबटाबाद में ऑपरेशन चलाते हैं। सवाल ये है कि आखिर किसे भूलने की कोशिश की जा रही है? पूरी दुनिया जानती है कि 2011 में अमेरिका ने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था।”
अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों पर चिंता
यह टिप्पणी अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हालिया बढ़ती नजदीकियों की पृष्ठभूमि में आई है। जयशंकर का संकेत था कि आतंकवाद को लेकर अमेरिका दोहरा रवैया अपनाता रहा है। एक ओर वह पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार बताता है, और दूसरी ओर, वही पाकिस्तान आतंकवादियों की पनाहगाह रहा है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर ट्रंप के दावे का खंडन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान हुए सीजफायर में अमेरिका ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस दावे पर जयशंकर ने साफ इनकार किया और तथ्यों के आधार पर जवाब दिया।
उन्होंने कहा, “यह सही है कि उस समय दुनिया भर से कई फोन कॉल्स आए थे। अमेरिका से भी बात हुई थी। लेकिन जो निर्णय हुआ, वह भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे तौर पर हुआ था। युद्ध के समय बातचीत होना सामान्य बात है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि फैसला किसी तीसरे देश ने कराया।”
भारत की स्थिति और आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट नीति
जयशंकर ने यह भी जोड़ा कि भारत ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर सटीक हमले किए थे, जिसके बाद इस्लामाबाद ने खुद सीजफायर की पेशकश की थी। भारत की स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट और आत्मविश्वास से भरी हुई थी। उन्होंने अमेरिका की भूमिका को सहयोगात्मक तो माना, लेकिन निर्णायक नहीं।
आतंकवाद के खिलाफ कोई समझौता नहीं
जयशंकर ने अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों को लेकर कहा कि “उनके बीच एक लंबा इतिहास रहा है, और उस इतिहास को नजरअंदाज करने की भी एक परंपरा रही है। यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन भारत अपनी नीति को लेकर स्पष्ट है- आतंकवाद के खिलाफ कोई समझौता नहीं।”
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत अब किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आता और अपनी सुरक्षा और हितों के बारे में स्वतंत्र रूप से फैसले लेता है।