“क्या बीकानेर के कालीन उद्योग पर अमेरिका का 25% टैरिफ भारी पड़ेगा? क्या है इसका असर?

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Bikaner industries crisis

Bikaner industries crisis: बीकानेर के पारंपरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय उद्योगों के सामने इन दिनों एक नया संकट मंडरा रहा है. अमेरिका की ओर से भारत पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क (टैरिफ) लगाए जाने की संभावना ने स्थानीय व्यापारियों, बुनकरों और उद्यमियों की चिंता बढ़ा दी है. सबसे अधिक असर कालीन, वुलन (ऊन), नमकीन और मिठाई जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर पड़ सकता है, (Bikaner industries crisis)जो लंबे समय से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को संबल दे रहे हैं, बल्कि भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

कालीन उद्योग: रोजगार का बड़ा आधार

बीकानेर का कालीन उद्योग राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का विषय रहा है. यह क्षेत्र न केवल उच्च गुणवत्ता वाले हस्तनिर्मित कालीनों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह देशभर के करीब 25 लाख प्रत्यक्ष और 50 लाख अप्रत्यक्ष श्रमिकों को रोजगार भी देता है. बुनाई, रंगाई, डिज़ाइनिंग और शिपमेंट जैसे विविध चरणों में हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी इस उद्योग पर निर्भर करती है.

अमेरिका को कालीन निर्यात की कीमतों में वृद्धि

टैरिफ लगने की स्थिति में भारत से अमेरिका को भेजे जाने वाले कालीनों की कीमतों में वृद्धि हो जाएगी. इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय कालीन की प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर हो जाएगी, और अन्य सस्ते विकल्पों की ओर ग्राहक मुड़ सकते हैं.

राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन का बयान

राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष, कमल कल्ला, इस मुद्दे पर स्पष्ट हैं. उनका कहना है, “यदि समय रहते सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो बुनकरों और श्रमिकों को दूसरे रोजगार तलाशने पर मजबूर होना पड़ेगा. केंद्र सरकार को इस संकट की गंभीरता को समझते हुए विशेष आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करनी चाहिए.”

बीकानेर की भुजिया और रसगुल्ले विश्वभर में प्रसिद्ध हैं. इनमें से बड़ी मात्रा में उत्पाद अमेरिका समेत अन्य देशों को निर्यात किए जाते हैं. आंकड़ों के अनुसार, हर साल करीब 10 करोड़ रुपये की मिठाई और नमकीन अमेरिका को निर्यात की जाती है.

स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि टैरिफ लागू होने की स्थिति में उनके व्यापार में 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. इसका असर केवल मुनाफे पर नहीं, बल्कि उत्पादन से लेकर आपूर्ति तक हर स्तर पर पड़ेगा.

त्योहारों के मौसम में चिंताएं और गहराईं

यह समय त्योहारों का है राखी, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि और दीपावली जैसे अवसरों पर भारत से अमेरिका और अन्य देशों में मिठाई, नमकीन और गिफ्ट आइटम्स की भारी मांग होती है. लेकिन ट्रंप सरकार की टैरिफ नीति इस पारंपरिक मांग को झटका दे सकती है.

हालांकि खतरे की आहट से परेशान व्यापारियों ने निराश होकर बैठना नहीं चुना है. अब कई उद्योगपतियों और निर्यातकों ने अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों जैसे यूरोप, खाड़ी देश, दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख करना शुरू कर दिया है.

व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति को एक अवसर के रूप में भी लिया जा सकता है, जिसमें भारत अपने पारंपरिक उत्पादों को नए बाज़ारों में पहुंचा सकता है. लेकिन इसमें समय, संसाधन और नीतिगत समर्थन की ज़रूरत होगी.

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