Sirohi News: सिरोही जिले के स्वास्थ्य विभाग में पिछले छह वर्षों में जारी किए गए दिव्यांगता प्रमाण-पत्रों में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का मामला प्रकाश में आया है। पटटीवार जांच में पता चला कि कुल 7,613 प्रमाण-पत्र जारी किए गए, जिनमें से 5,177 प्रमाण-पत्र ऐसे पाए गए जो दोनों—राज्य और केंद्र—के पोर्टलों पर अलग-अलग अधिकारियों के नाम से अपलोड थे।
कभी पदस्थ ही न रहे डॉक्टरों के नाम पर प्रमाण-पत्र
जांच में यह भी पाया गया कि कई प्रमाण-पत्र उन डॉक्टरों के नाम से बनाए गए थे जिनका जिले में कभी पदस्थापन ही नहीं हुआ। उदाहरण के लिए, डॉ. गित्री अग्रवाल का नाम बार-बार विभिन्न विशेषज्ञताओं—नेत्र, ईएनटी, मानसिक रोग, हड्डी रोग—के रूप में दर्ज मिला, जबकि मेडिकल रिकॉर्ड में उनका सिरोही में काम करने का कोई रिकार्ड नहीं है।
प्रमुख संदिग्ध पैटर्न
- कई प्रमाण-पत्र एक ही दिन में तैयार किए गए—जो सामान्य प्रक्रियाओं के खिलाफ है।
- कुछ लाभार्थियों ने सरकारी सुविधाएँ प्राप्त करने के बाद प्रमाण-पत्र कुछ महीनों में ही सरेंडर कर दिए।
- पोर्टल एक्सेस पर एकाधिकार और दस्तावेज़ जाँच की कमी ने फर्जी गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
प्रशासनिक प्रतिक्रिया और आगे की कार्रवाई
मौजूदा CMHO डॉ. दिनेश खराड़ी ने कहा है कि जांच रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी गई है और मामले की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की अपेक्षा की जा रही है। फिलहाल पूर्व CMHO डॉ. राजेश कुमार चित्तौड़गढ़ के निंबाहेड़ा जिला चिकित्सालय में उप-नियंत्रक के पद पर तैनात हैं। प्रशासन ने संकेत दिया है कि यदि आरोप वैध पाए गए तो सख्त अनुशासनात्मक और वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।
क्या यह सिस्टम-स्तर की चूक है?
विश्लेषकों का कहना है कि यह केवल किसी एक अधिकारी की करतूत नहीं बल्कि सिस्टम-स्तर की कमियों का परिणाम है—जहां क्रॉस-वेरिफिकेशन न के बराबर हुआ, मेडिकल बोर्ड स्तर पर मिलान कमजोर रहा और डिजिटल सिग्नेचर व पोर्टल एक्सेस की सुरक्षा पर उचित नियंत्रण नहीं था। ऐसे में लाभार्थियों और सरकारी योजनाओं पर लोगों का भरोसा प्रभावित हुआ है।
“डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग और पोर्टल एक्सेस का एकाधिकार इस घोटाले की सबसे बड़ी वजह नजर आता है। पारदर्शिता के बिना सिस्टम असुरक्षित है।”


































































