funeral science: मृत्यु…अंत नहीं, रूपांतरण…सनातन धर्म के मूल में यह स्वीकृति है कि मृत्यु अपरिहार्य है, परंतु यह अंत नहीं …एक रूपांतरण है। वेद, उपनिषद और श्रीमद्भगवद्गीता हमें बताते हैं कि मृत्यु केवल शरीर का त्याग है, आत्मा का नहीं। “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।” (गीता 2.23)…शाश्वत आत्मा नष्ट नहीं होती, वह केवल अपने यात्रा-स्थल बदलती है — एक देह से दूसरी अवस्था में। (funeral science)अंतिम संस्कार — परंपरा में छिपा विज्ञान अक्सर लोग मृत्यु संस्कारों को केवल धार्मिक अनुष्ठान मानते हैं, लेकिन वेदों में वर्णित प्रत्येक संस्कार का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार है। ये न केवल मृतक के प्रति सम्मान हैं, बल्कि जीवितों के मानसिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन का साधन भी हैं।
अग्नि-संस्कार (दाह संस्कार)
वैज्ञानिक पहलू उच्च तापमान पर दहन शरीर में उपस्थित संक्रमण, रोगाणु और अशुद्धियों को नष्ट करता है। यह पर्यावरणीय स्वच्छता में योगदान देता है। आध्यात्मिक पहलू अग्नि पंचमहाभूतों में से एक है। वेदों में अग्नि को “शुद्धिकर्ता” और “देवदूत” कहा गया है, जो शरीर को मूल तत्त्वों में लौटा देता है और आत्मा को मुक्त करता है।
अस्थि-विशर्जन
वैज्ञानिक पहलू प्रवाहित जल में अस्थियाँ घुलकर मिट्टी और खनिज में मिल जाती हैं, जिससे जल और पर्यावरण में शुद्धता बनी रहती है। आध्यात्मिक पहलू मोक्षदायिनी गंगा और अन्य पवित्र नदियाँ आत्मा की आगे की यात्रा के लिए शांति और मुक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।
श्राद्ध और पिंडदान
वैज्ञानिक पहलू सामूहिक भोजन और अन्नदान समाज में सहयोग, करुणा और पारस्परिक संबंधों को मजबूत करते हैं। आध्यात्मिक पहलू यह पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और स्मरण का भाव है, जिससे पीढ़ियों के बीच आध्यात्मिक जुड़ाव बना रहता है।
संस्कार — जीवन की दिशा और मृत्यु का सम्मान
सनातन संस्कृति में जीवन और मृत्यु दोनों को संस्कारों से जोड़ा गया है। इनका उद्देश्य है जीवन को पवित्र बनाना मृत्यु को गरिमा देना आत्मा की यात्रा में सहायक बनना समाज में सामूहिक स्मरण और सहयोग की भावना जगाना
आधुनिकता और परंपरा का संतुलन
वर्तमान शहरी जीवन में स्थान, समय और संसाधनों की सीमाएं हैं। इसीलिए आज इलेक्ट्रिक क्रिमेटोरियम
पर्यावरण-हितैषी लकड़ी पेशेवर संस्कार सेवाएँ जैसी नई पहलें आ रही हैं। परंतु विधियों का सार और उनका आध्यात्मिक उद्देश्य किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहिए।
सनातन विज्ञान की प्रासंगिकता
वेदों में वर्णित मृत्यु संस्कार मानव मनोविज्ञान और प्रकृति-विज्ञान का अद्भुत संगम हैं। शोक को स्वीकारने और मुक्त करने का सामूहिक तरीका हैं। पर्यावरणीय संतुलन और स्वास्थ्य सुरक्षा के सिद्धांतों पर आधारित हैं। हमें अनित्यता का बोध और कर्तव्य का स्मरण कराते हैं। मृत्यु से मोक्ष तक “संस्कार केवल देह को विदा करने का नहीं, आत्मा को आगे बढ़ाने का माध्यम है।” अंतिम संस्कार हमें सिखाता है …जीवन का अंत भी उतना ही गरिमामय होना चाहिए, जितना उसका आरंभ। वेद हमें यह याद दिलाते हैं कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि एक और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है।
✍ हेमराज तिवारी