Arunachal Pradesh Dispute : लंदन निवासी भारतीय महिला प्रेमा वांगजोम थोंगडोक को शंघाई ट्रांज़िट के दौरान उनके पासपोर्ट पर ‘अरुणाचल प्रदेश’ लिखे होने के कारण रोका गया। चीन ने अरुणाचल को ‘दक्षिणी तिब्बत’ बताने की अपनी नीति को आधार बनाकर उनका पासपोर्ट अवैध ठहराया।
प्रेमा की दावों का असर
थोंगडोक ने बताया कि उन्हें खाना, सुविधाएँ या औपचारिक अपडेट नहीं दिए गए और उन्हें बाद में तभी पासपोर्ट लौटा जब उन्होंने एयरलाइन का नया टिकट खरीदने पर सहमति दी। फिलहाल उन्होंने घटना को भारत की संप्रभुता पर जुड़ी गंभीर बात बताकर सरकार से कूटनीतिक हस्तक्षेप की माँग की है।
चीन का अरुणाचल दावा
चीन लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को “दक्षिणी तिब्बत” कहता आया है और इसे ऐतिहासिक-भौगोलिक आधार पर अपना मानता है। इसके प्रमुख तर्क हैं:
- तिब्बत से ऐतिहासिक जुड़ाव: चीन का दावा कि तिब्बत से जुड़े दक्षिणी इलाके ऐतिहासिक रूप से तिब्बती शासन से जुड़े रहे।
- तवांग का धार्मिक महत्व: तवांग और आसपास का क्षेत्र तिब्बती बौद्ध परंपरा से जुड़ा है, जिसे चीन उपयोग में लाता है।
- 1914 की शिमला वार्ता (मैकमोहन लाइन) को अस्वीकार: चीन ने मैकमोहन रेखा को मान्यता नहीं दी और यही सीमा-रेखा आज विवाद का प्रमुख कारण है।
भारत की स्थिति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत अरुणाचल प्रदेश को पूर्णतः अपना हिस्सा मानता है। 1914 में ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच बनी मैकमोहन रेखा के मुताबिक तवांग सहित अरुणाचल भारत के प्रशासनिक दायरे में आए। 1950 के बाद चीन के तिब्बत पर नियंत्रण बढ़ने के साथ विवाद तीखा हुआ और 1962 के युद्ध ने सीमा मसलों को और जटिल कर दिया।
लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) और विवादित क्षेत्र
भारत-चीन सीमा लगभग 3,488–3,500 किमी लंबी है और कई हिस्सों में स्पष्टम रूप से परिभाषित नहीं है। इसलिए समय-समय पर तनाव, घुसपैठ और सैन्य टकराव जैसे घटनाएं होती रहीं हैं। अक्साई चिन, तिब्बत से लगे क्षेत्र और अरुणाचल इसके प्रमुख केंद्र रहे हैं।
कूटनीतिक और सुरक्षा-निहित परिणाम
ऐसी घटनाएँ द्विपक्षीय कूटनीति में तनाव पैदा कर सकती हैं। न्यूक्लियर-शक्तियों के बीच सीमांकन, नागरिक अधिकार और कांसुलेर सुरक्षा के मुद्दे भी उठते हैं। भारत के विदेश कार्यालय और संबंधित कांसुलेरेट/एम्बेसी से ऐसे मामलों में हस्तक्षेप अपेक्षित होता है।
विशेषकर ट्रांज़िट यात्रियों के मामलों में फौरन कांसुलेर सहायता और अंतरराष्ट्रीय नागरिक अधिकारों की रक्षा अहम है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीमाओं पर स्थायी समाधान के लिए राजनीतिक वार्ता, भरोसेमंद संचार और स्पष्ट मानचित्र-आधारित समझौतों की आवश्यकता होगी।
