हेमराज तिवारी
“श्राद्धेन पितरः तृप्ताः, तृप्ताः पितरः सदा सुखिनः”
(मनुस्मृति)
Pitru Dosh: जीवन में व्यापार में निरंतर घाटा, संतान का विपरीत आचरण, घर में प्रेम-सौहार्द की कमी, बार-बार रोग और मानसिक अशांति — ये केवल सांसारिक कारणों से नहीं, बल्कि अदृश्य कर्मबंधनों के परिणाम भी हो सकते हैं। इनमें एक प्रमुख कारण है — पितृ दोष।
पितृ दोष तब उत्पन्न होता है जब हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और कर्तव्य भूल जाते हैं, उनकी आत्मा को तृप्ति नहीं मिल पाती। किसी कारणवश उनका श्राद्ध, (Pitru Dosh)तर्पण या स्मरण विधिवत नहीं हो पाता।
पितृ पक्ष का महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। यह वह पावन काल है जब पितृ लोक के द्वार खुलते हैं और पितरों की आत्माएँ अपने वंशजों के तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध की प्रतीक्षा करती हैं।
गरुड़ पुराण में कहा गया है:
“अन्नं जलं च तृप्त्यर्थं, दत्तं यत्र श्रद्धया, पितॄणां तेन तृप्तिः स्यात्, न संशयः कदाचन॥”
अर्थ — श्रद्धा से दिया गया अन्न-जल पितरों को अवश्य तृप्त करता है।
पितृ पक्ष में करने योग्य मुख्य कार्य
तर्पण और पिंडदान
तिल, कुश, जल, दूध, शहद, गंगाजल और चावल से तर्पण करें। पिंडदान से पितरों को स्थायी तृप्ति मिलती है। यह कार्य प्रातः सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय के समय करना श्रेष्ठ है।
श्लोक (महाभारत):
“तर्पणेनैव ये तृप्ताः, पितरः स्वर्गवासिनः, ते प्रसन्नाः सदा रक्षन्ति, कुले सर्वत्र बन्धवः॥”
ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा
किसी योग्य ब्राह्मण को ससम्मान भोजन कराएँ और यथाशक्ति दक्षिणा दें। यह पितरों के लिए पुण्य संचय का श्रेष्ठ मार्ग है।
दान-पुण्य
अन्न, वस्त्र, छाता, जूते, अनाज, ताम्बूल, पात्र आदि का दान करें। विशेष रूप से गऊ, भूमि, स्वर्ण और ताम्र का दान पितृ तृप्ति हेतु श्रेष्ठ माना गया है।
श्लोक (गरुड़ पुराण):
“गवां दानं तु यत् कृत्वा, पितरः परमं गताः, न पुनः जायते दुःखं, यमलोकं न याति च॥”
व्रत और नियम
पितृ पक्ष में मद्यपान, मांसाहार, क्रोध, असत्य भाषण और अपवित्रता से बचें। स्नान, ध्यान, जप, मंत्रोच्चार, गीता या गरुड़ पुराण का श्रवण करें।
विशेष मंत्र जप
पितृ शांति मंत्र:
“ॐ पितृभ्यः स्वधाभ्यः स्वाहा ॥” (११, २१ या १०८ बार जपें)
महामृत्युंजय मंत्र से भी पितरों को शांति और आशीर्वाद मिलता है।
पितृ दोष से मुक्ति के लाभ
जब पितृ दोष दूर होता है, तब:
- घर में प्रेम और सौहार्द लौट आता है।
- व्यापार और धन में वृद्धि होती है।
- संतान का आचरण सुधरता है।
- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह हमारे अस्तित्व की जड़ों को पोषित करने का अवसर है। हम वृक्ष की शाखाओं से प्रेम करते हैं, लेकिन उसकी जड़ें भूल जाते हैं — पितृ पक्ष हमें याद दिलाता है कि जड़ें मजबूत हों तो शाखाएँ स्वतः फलती-फूलती हैं।
श्लोक (महाभारत):
“यः पितॄन् संपूज्य नित्यं, श्रद्धया सत्कृतान् सदा, स पुत्रपौत्रैः सम्पन्नः, सुखमेधो भवेद् ध्रुवम्॥”
