निजी प्रैक्टिस पर सख्त पाबंदी
अब किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य, नियंत्रक और अधीक्षक निजी क्लिनिक या निजी प्रैक्टिस नहीं चला सकेंगे। पद ग्रहण के समय उन्हें हलफनामा देना होगा कि वे पूरी तरह से सरकारी कर्तव्यों को ही प्राथमिकता देंगे। साथ ही वे विभाग प्रमुख या यूनिट-हेड जैसे अन्य पदों पर समान समय में कायम नहीं रह सकेंगे।
नए चयन मानदंड और प्रक्रिया
- प्रधानाचार्य व नियंत्रक पदों के लिए केवल वही शिक्षक आवेदन कर सकेंगे जो राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की शर्तों के अनुसार वरिष्ठ प्रोफेसर हों।
- यदि किसी कॉलेज में उपयुक्त योग्य उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं तो अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों से भी आवेदक बुलाए जा सकते हैं।
- चयन की प्रक्रिया एक समिति द्वारा की जाएगी, जिसकी अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे। समिति में कार्मिक विभाग के सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव और राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय/मारवाड़ मेडिकल कॉलेज के कुलपति भी शामिल रहेंगे।
- आवेदकों की अधिकतम आयु 57 वर्ष निर्धारित की गई है, जिससे युवा तथा अनुभवी डॉक्टरों को संतुलित अवसर मिल सके।
पद-अवधि, स्थानांतरण और स्थिरता
चयन समिति प्रधानाचार्य के लिए तीन नामों की सूची जारी करेगी; राज्य सरकार इनमें से नाम चुनकर नियुक्ति करेगी। नियुक्ति की प्रारम्भिक अवधि 3 वर्ष रहेगी, जिसे प्रदर्शन के आधार पर अधिकतम 2 वर्ष और बढ़ाया जा सकेगा। राज्यहित में आवश्यकता होने पर नियुक्त प्रधानाचार्य को अन्य कॉलेज में स्थानांतरित भी किया जा सकता है।
अधीक्षकों की नई व्यवस्था
एकल-विशेषता वाले अस्पतालों में सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर को स्वतः अधीक्षक नियुक्त किया जाएगा। बहु-विशेषता अस्पतालों के लिए चिकित्सा शिक्षा सचिव की अध्यक्षता वाली समिति सिफारिश करेगी। अधीक्षक भी निजी प्रैक्टिस से वंचित रहेंगे और प्रतिदिन अस्पताल प्रशासन तथा रोगी देखरेख पर केंद्रित रहेंगे।
अतिरिक्त प्रधानाचार्य
अब किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में पाँच से अधिक अतिरिक्त प्रधानाचार्य नहीं होंगे। इन अधिकारियों की भूमिकाएँ पढ़ाई, अनुसंधान, छात्र-समस्या, प्रशासन तथा अस्पताल सेवा की निगरानी पर केंद्रित होंगी। वे प्रधानाचार्य के मार्गदर्शन में मिलकर विभागीय सुचारुता सुनिश्चित करेंगे।
चिकित्सा शिक्षा सचिव अम्बरीष कुमार ने कहा कि ये परिवर्तन पारदर्शिता, जवाबदेही और कार्यकुशलता बढ़ाने के उद्देश्य से हैं। प्रमुख लक्ष्य यह है कि डॉक्टरों का पूरा समय और विशेषज्ञता सीधे-सीधे सरकारी मरीजों की सेवा में लगे, जिससे रोगियों को समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण इलाज मिल सके। नए नियमों के लागू होने से उम्मीद है कि अस्पतालों का दैनिक संचालन बेहतर होगा, निजी प्रैक्टिस के कारण होने वाली गैर-हाजिरी या सेवाभंग की घटनाएँ घटेंगी और शैक्षणिक व प्रशासनिक कार्यों में संतुलन रहेगा। साथ ही, प्राथमिकता रोगी उपचार, अनुसंधान व चिकित्सा प्रशिक्षण पर बनी रहेगी।
