copy politics: पाकिस्तान एक बार फिर भारत की कॉपी पॉलिटिक्स करता नजर आ रहा है। जिस तरह भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मोर्चा खोलने के लिए शशि थरूर, रविशंकर प्रसाद और असदुद्दीन ओवैसी जैसे बहुविध सांसदों की डेलिगेशन विदेश भेजने की (copy politics) घोषणा की, ठीक उसी फॉर्मूले को पाकिस्तान ने भी अपनाया है।
बिलावल भुट्टो की अगुवाई में विदेशी दौरे की योजना
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो अब एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अमेरिका, यूरोप और रूस का दौरा करेंगे। सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान के पास आतंकवाद पर भारत को जवाब देने के लिए कोई ठोस आधार है या यह सिर्फ एक “डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज” है?
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल में कौन-कौन?
- बिलावल भुट्टो: पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के युवा नेता, जिनके भाषण भारत विरोधी माने जाते हैं।
- हिना रब्बानी खार: पूर्व विदेश मंत्री, जो हर बातचीत में ‘कश्मीर’ का मुद्दा उठाती रही हैं।
- खुर्रम दस्तगीर खान: पाकिस्तानी सेना के करीबी, पूर्व रक्षा मंत्री।
इनका एजेंडा है भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेरना और पाकिस्तान को “पीड़ित राष्ट्र” के रूप में प्रस्तुत करना।
भारत का स्पष्ट और कड़ा रुख
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि पाकिस्तान से बातचीत का एक ही एजेंडा होगा – आतंकवाद बंद करो और POK वापस लौटाओ। सिंधु जल संधि जैसे मुद्दे भी तब तक प्राथमिकता में नहीं हैं जब तक पाकिस्तान आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई नहीं करता।
क्या काम करेगी पाकिस्तान की यह चाल?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, IMF से आर्थिक सहायता की गुहार लगानी पड़ रही है और FATF द्वारा ग्रे लिस्ट में डाले जाने से उसकी स्थिति पहले ही कमजोर हो चुकी है। ऐसे में बिलावल भुट्टो का विदेश दौरा एक “प्रोपेगैंडा सर्कस” से ज्यादा कुछ नहीं लगता।
नकल के पीछे क्या है मंशा?
दरअसल, यह रणनीति एक “डिफ्लेक्शन टैक्टिक” है – आतंकवाद से ध्यान हटाकर कश्मीर मुद्दे को वैश्विक मंच पर लाना। लेकिन भारत अब सतर्क है और हर मंच पर पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करने के लिए तैयार है। जब तक पाकिस्तान आतंक की फैक्ट्री बंद नहीं करता, तब तक उसकी कोई भी विदेशी रणनीति सफल नहीं होगी। अब देखने वाली बात यह है कि बिलावल भुट्टो की टीम कोई नया ड्रामा कर पाती है या फिर एक बार फिर दुनिया पाकिस्तान की पोल खोल देगी।