ऑपरेशन त्रिशूल — क्या दिखाया गया?
- थल-सेनाः रेगिस्तानी इलाके में T-90 टैंक्स और बख्तरबंद यूनिटों ने परिचालन-गत प्रदर्शन किया; तोपखाने से लक्षित फायरिंग का सटीक प्रदर्शन हुआ।
- वायु-सेनाः फाइटर जेट्स और अपाचे हमले के हेलिकॉप्टरों ने हवाई समर्थन व लक्ष्य पहचान के अभ्यास किए।
- समन्वय: थल, वायु और नौसेना घटकों के बीच सामरिक समन्वय और ठोस आक्रमण-सुरक्षा ड्रिल पर जोर रहा।
- उद्देश्य: किसी भी सीमा-परिस्थिति में एक साथ और तेज़ी से जवाब देने की क्षमता का परीक्षण व ओपरेशनल तैयारियों की समीक्षा।
T-90 टैंक — विशेषताएँ
T-90 टैंक रूसी निर्माण है और आधुनिक युद्ध परिदृश्यों में इसकी अहम भूमिका मानी जाती है। प्रमुख बिंदु:
- सड़क पर लगभग 60 किमी/घंटा और ख़राब रास्तों पर ~50 किमी/घंटा की गति क्षमता।
- रक्षा के लिए Kaktus K-6 विस्फोटक-रिएक्टिव आर्मर जैसी सुरक्षा प्रणाली।
- उच्च गतिशीलता, रोबस्ट संरचना और फायरपावर के कारण अग्रिम पंक्ति में उपयोगी।
अपाचे (AH-64E) हेलिकॉप्टर — मारक क्षमता
ऑपरेशन त्रिशूल में अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर की तैनाती ने वायु-सपोर्ट और वर्चस्व दिखाया। इसकी प्रमुख खूबियाँ:
- हेलफायर मिसाइलों, हाइड्रो रॉकेट्स और स्टिंगर जैसी सुसज्जित उड़ानों से सटीक व घातक मारक क्षमता।
- 30 मिमी चेन-गन, 1,200 राउंड तक लगातार फायर करने की क्षमता।
- 360-डिग्री कवरेज रडार, टारगेट-एक्विजिशन सिस्टम और नाइट-विजन सेंसर — दिन और रात दोनों समय सटीक संचालन सक्षम।
- भारतीय वायुसेना को जून 2025 में मिली AH-64E की पहली खेप ने इस अभ्यास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ऑपरेशन त्रिशूल ने न केवल देश की सक्रिय रक्षा-तैयारी का संदेश दिया बल्कि पड़ोसी सीमाओं के पास युद्धक क्षमता का भी प्रत्यक्ष प्रदर्शन किया। अभ्यास को लेकर सैन्य अधिकारी कहते हैं कि यह समन्वित क्षमता, त्वरित प्रतिक्रिया और नई रणनैतिक प्रक्रियाओं को परखने का अवसर था। साथ ही, राजधानी में हुए धमाके के बाद उठी सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए सभी सीमा-क्षेत्रों पर सतर्कता बढ़ा दी गई है।
सेना के वरिष्ठ कमांडरों ने बताया कि अभ्यास के निष्कर्षों पर आधारित रणनीतियों में सुधार किया जाएगा तथा आवश्यकतानुसार और भी समन्वित ड्रिलें तथा तकनीकी उन्नयन किये जाएँगे। सुरक्षा संस्थाओं ने कहा है कि नागरिकों को कोई भी अफवाह साझा न करने और आधिकारिक सूचना ही मानने की सलाह दी जाती है।
