पूर्व CJI बोले: अगर चुनाव आयोग को मिला असीमित अधिकार, तो लोकतंत्र की चाबी छिन जाएगी!

One Nation One Election

One Nation One Election: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जे.एस. खेहर ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रणाली पर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यदि चुनाव आयोग (One Nation One Election)को इस प्रणाली में असीमित अधिकार दिए जाते हैं, तो यह लोकतांत्रिक ढांचे के संतुलन को प्रभावित कर सकता है।

जेपीसी के सामने रखी गई राय

दोनों पूर्व न्यायाधीश संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) की बैठक में शामिल हुए। उन्होंने संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पर अपनी राय दी। इन विधेयकों का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है।

चुनाव आयोग की शक्तियों पर जताई आशंका

सूत्रों के अनुसार, दोनों पूर्व CJI ने कहा कि चुनाव आयोग को बगैर निगरानी व्यापक शक्तियां देना उचित नहीं होगा। उन्होंने “नियंत्रण और संतुलन” (Checks and Balances) बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि शक्ति का दुरुपयोग न हो सके।

पूर्व CJI रंजन गोगोई भी जता चुके हैं चिंता

इससे पहले पूर्व CJI रंजन गोगोई ने भी चुनाव आयोग को दी जाने वाली शक्तियों पर चिंता जताई थी और निगरानी व्यवस्था की सिफारिश की थी।

एक पूर्व न्यायाधीश ने पांच साल के पूर्ण कार्यकाल को लोकतंत्र और सुशासन के लिए अनिवार्य बताया। उनका मानना है कि छोटा कार्यकाल नीति निर्माण और योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा बनता है।

CJI चंद्रचूड़ की स्पष्ट राय

पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने पहले भी कहा था कि यदि सरकार का कार्यकाल एक वर्ष या उससे कम रह जाए, तो आचार संहिता के कारण शासन और प्रशासन ठप हो सकता है।

पूर्व CJI यू.यू. ललित और रंजन गोगोई भी पहले जेपीसी के सामने अपनी राय रख चुके हैं। शुक्रवार को हुई समिति की यह आठवीं बैठक थी, जिसमें विधेयकों की समीक्षा की गई।

जेपीसी अध्यक्ष पीपी चौधरी का बयान

जेपीसी के अध्यक्ष और भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने कहा कि विभिन्न राज्यों में नेताओं और नागरिक समाज ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का समर्थन किया है। हालांकि, कुछ राजनीतिक दलों ने स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर चिंता जताई है।

विपक्ष की आपत्ति

कुछ विपक्षी दलों का मानना है कि यह प्रस्ताव संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो अलग-अलग चुनावों को आवश्यक बनाता हो।

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