इतिहास और श्रद्धा का संगम
सोलहवीं शताब्दी में चौहान वंश से मुक्त होकर राठौड़ों के अधीन आया यह कस्बा, आज भी माता चौथ की आस्था का गवाह है। राठौड़ वंश के शासक तेजसिंह राठौड़ ने 1671 में मुख्य मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक तिबारा बनवाया था, जिससे माता के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा का पता चलता है। हाड़ौती क्षेत्र के लोग आज भी किसी भी शुभ कार्य से पहले माता को निमंत्रण देने की परंपरा निभाते हैं।
कुलदेवी के रूप में पूजा
चौथ माता को बूंदी राजघराने के समय से कुलदेवी के रूप में पूजा जाता रहा है। कुछ का मानना है कि जयपुर राजघराने के राव माधोसिंह ने इस मंदिर की स्थापना की थी, जब उन्होंने सवाई माधोपुर बसाया। राव माधोसिंह ने एक बार एक महिला की सती होने की कोशिश को रोकते हुए माता के दरबार में उसकी गुहार सुनी, और उसकी पति को जीवनदान दिया। तभी से महिलाएं चौथ का उपवास रखकर अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
स्थानीय ट्रस्ट की पहल
आज, माता की बढ़ती आस्था को देखते हुए स्थानीय लोगों ने मंदिर ट्रस्ट का गठन किया है, जो चढ़ावे का हिसाब रखता है और भक्तों की सुविधाओं का ध्यान रखता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए छायादार मार्ग बनवाया गया है, और सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। मन्दिर पुजारी के अनुसार, आज करवा चौथ पर करीब दो से ढाई लाख श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आएंगे, जिनमें महिलाओं की संख्या सर्वाधिक होगी। मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता सुबह से ही लगा हुआ है, जो इस धार्मिक स्थल की महत्ता को दर्शाता है।