नीति में क्या मुख्य बदलाव किया गया?

  • ज़ोनल रेलवे अब स्टेशन मास्टर-प्लान में प्रीमियम सिंगल-ब्रांड आउटलेट्स के लिए स्थान आरक्षित कर सकेंगे।
  • प्रीमियम आउटलेट्स का आवंटन नामांकन से नहीं, बल्कि पारदर्शी ई-नीलामी (e-auction) के जरिए होगा।
  • हर आउटलेट की ऑपरेटिंग अवधि 5 वर्ष होगी।
  • कोई आरक्षण नीति प्रभावित नहीं होगी — SC/ST/OBC/अन्य कोटे जस-के-तस रहेंगे।
  • नए स्टॉल कैटेगरी के रूप में “Premium Brand Catering Outlet” जोड़ी गई है।

किस स्टेशनों पर पहले दिखेंगे ये ब्रांड?

नीति के अनुसार बड़े शहरों और उच्च यात्री-भार वाले स्टेशन जैसे दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और अन्य प्रमुख नोड्स पर प्राथमिकता दी जाएगी। प्रत्येक ज़ोनल प्राधिकरण स्टेशन की स्थानिक क्षमता, यात्री संख्या और आर्थिक व्यवहार्यता के आधार पर निर्णय लेगा—इसका मतलब यह नहीं कि हर स्टेशन पर ब्रांड खुलेंगे।

कौन-कौन से ब्रांड खोल सकेंगे आउटलेट?

नीति में कंपनी-ओन्ड आउटलेट या फ्रैंचाइज़ी मॉडल दोनों को स्थान दिया गया है। पहले चरण में जिन ब्रांडों का नाम स्पष्ट किया गया है वे हैं:

  1. KFC
  2. McDonald’s
  3. Pizza Hut
  4. Baskin Robbins
  5. Haldiram
  6. Bikanervala
  7. अन्य राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय कंपनी-ओन्ड और फ्रैंचाइज़ी प्रीमियम ब्रांड्स

यात्रियों को क्या लाभ होगा?

  • हाइजीन और भरोसेमंद ब्रांडेड फूड विकल्प
  • रात में और लेट-शिफ्ट ट्रेनों पर बेहतर सुविधा
  • एक समान ब्रांड अनुभव पूरे नेटवर्क में
  • स्टेशन पर बेहतर बैठने/खाने की व्यवस्था और साफ-सुथरी कैटरिंग

किस बात का ध्यान रखा गया है?

रेलवे ने स्पष्ट किया है कि यह कदम मौजूदा स्टॉल व्यवस्था को हटाने का संकेत नहीं है। पारंपरिक छोटे विक्रेता और स्टॉल उनका हिस्सा बने रहेंगे; प्रीमियम ब्रांड्स अलग से निर्धारित स्थानों पर शामिल किए जाएंगे ताकि प्रतिस्पर्धा और स्थानीय रोज़गार पर नकारात्मक प्रभाव कम रहे।

निगरानी और आवंटन प्रक्रिया

रेलवे बोर्ड ने आवंटन के पारदर्शी तंत्र पर बल दिया है—ई-नीलामी के बाद विजेता ऑपरेटर पांच साल के अनुबंध पर स्टॉल चलाएगा। ज़ोनल स्तर पर लागत-लाभ अध्ययन और यात्री-आधारित फैसले लिए जाएंगे।

नए बदलाव को लेकर कुछ सवाल भी उठे हैं—स्थानीय विक्रेताओं के हितों की सुरक्षा कैसे होगी, छोटे दुकानदारों की रोज़ी पर क्या असर पड़ेगा, और क्या सभी ब्रांड हाई-स्टैंडर्ड हाइजीन बनाए रख पाएंगे? रेलवे ने आश्वासन दिया है कि नीति लागू करते समय स्थानीय इकॉनमी और कोटा नियमों का सम्मान किया जाएगा।

यह परिवर्तन यात्रियों के लिए सुविधाजनक साबित होने की संभावना रखता है, खासकर बड़े नोड्स पर। आने वाले महीनों में जब रिफ्राबडिंग और पुनर्विकास प्रोजेक्ट्स पूरे होंगे, तो प्लेटफॉर्म्स पर परिचित ब्रांड-बोर्ड्स देखना आम बात होगी। पर यह भी ध्यान देने की बात है कि इस बदलाव का सामाजिक और आर्थिक असर नियंत्रित व संतुलित तरीके से संभाला जाना चाहिए।