Labour Codes : 21 नवंबर 2025 से लागू नए लेबर कोड्स के चलते Swiggy, Zomato, Ola और Uber जैसी फर्मों को सोशल-सिक्योरिटी फंड में योगदान देना होगा—और बढ़ी हुई लागत अंततः ग्राहकों तक पहुंचेगी।
कितना बढ़ेगा हर ऑर्डर का घाटा?
रिपोर्ट में माना गया है कि कंपनियों को अब अपने सालाना टर्नओवर का 1–2% या गिग-वर्कर्स को दिए जाने वाले कुल भुगतान का 5% तक सोशल-सिक्योरिटी फंड में जमा करना पड़ सकता है। यदि 5% वाला विकल्प लागू होता है तो प्रति-ऑर्डर लागत में अनुमानित बढ़ोतरी इस प्रकार हो सकती है:
- फूड डिलीवरी पर लगभग ₹3.2 प्रति ऑर्डर अतिरिक्त
- क्विक-कॉमर्स ऑर्डर पर लगभग ₹2.4 प्रति ऑर्डर अतिरिक्त
ये रकम छोटी लग सकती हैं, पर लाखों-करोड़ों ऑर्डर के स्केल पर कंपनियों के ऊपर भारी दबाव बनता है और यही बढ़ी हुई लागत ग्राहकों के बिल में दिखाई देगी।
कंपनियों के पास विकल्प क्या हैं?
अतिरिक्त खर्च की भरपाई के लिए कंपनियां कुछ रास्ते अपना सकती हैं — प्लेटफॉर्म फीस बढ़ाना, सर्ज-प्राइसिंग लागू करना, या डिलीवरी चार्ज में वृद्धि। कुछ मामलों में कंपनियां पहले से ही गिग-वर्कर्स को दे रही सुविधाओं (दुर्घटना बीमा, हेल्थ कवर, मैटरनिटी बेनिफिट आदि) को केंद्रीकृत फंड के जरिए मैनेज करेंगी, जिससे प्रति-ऑर्डर लागत थोड़ी कम होकर ₹1–2 रह सकती है। बावजूद इसके कुल लागत बढ़ने की संभावना बनी रहेगी क्योंकि कंपनियाँ मार्जिन कटौती करना प्राथमिकता नहीं देंगी।
स्टाफिंग कंपनियों के लिए अवसर
नए कोड्स से TeamLease जैसी स्टाफिंग फर्मों के लिए नया कारोबार खुल सकता है क्योंकि कंप्लाइंस और लाभ वितरण अगर केंद्रीकृत और सरल होंगे तो इन एजेंसियों की भूमिका महत्वपूर्ण बन जाएगी।
वर्कर-ट्रैकिंग और डिजिटल ढांचा
गिग-वर्कर्स की अनियमित कार्य-शैली (एक ही समय में कई प्लेटफॉर्म पर काम, आवर्ती ऐप-स्विचिंग) के कारण सोशल-सिक्योरिटी बेनिफिट्स की ट्रैकिंग चुनौतीपूर्ण है। e-Shram जैसे डिजिटल डेटाबेस और रीयल-टाइम वर्कर-ट्रैकिंग सिस्टम के बिना लाभों का समान वितरण मुश्किल रहेगा।
लेबर कोड्स का बड़ा अर्थ
21 नवंबर से लागू चार लेबर-कोड्स ने 29 पुराने श्रम कानूनों को एकीकृत करते हुए गिग-वर्कर्स को औपचारिक सुरक्षा दायरे में लाया है। हालांकि लॉजिक के मुताबिक यह लंबे समय में लाखों गिग-वर्कर्स को लाभ देगा, फिलहाल असमंजस इस बात पर है कि क्या वजेज़ कोड के तहत न्यूनतम मजदूरी गिग-वर्कर्स पर लागू होगी या नहीं—और यदि लागू हुई, तो इसका सीधा असर कंपनियों की लागत व उपभोक्ता दरों पर पड़ेगा।
