“किसे बचाया जा रहा है?”
अमायरा परिवार का सीधा आरोप है कि पूरे मामले में पुलिस शुरुआत से ही स्कूल प्रबंधन के दबाव में काम कर रही है। कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनका अब तक कोई जवाब नहीं मिला:
- क्राइम सीन को धुलने क्यों दिया गया? — घटना के तुरंत बाद कक्षा को साफ कर दिया गया, जिससे प्राथमिक सबूत मिट गए।
- CCTV फूटेज की जांच समय पर क्यों नहीं? — सीसीटीवी रिकॉर्ड उपलब्ध होना चाहिए था, पर पुलिस ने समय रहते फुटेज सीज नहीं किया।
- स्कूल स्टाफ का बयान तुरंत क्यों नहीं लिया? — कई शिक्षकों और स्कूल कर्मियों से बयान लेने में 4–7 दिन की देरी की गई।
- अमायरा का बैग घटना के 9 दिन बाद क्यों जब्त? — यह देरी जांच की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल खड़ा करती है।
पुलिस लापरवाही के 5 प्रमुख संकेत
- जांच क्राइम सीन से शुरू न होकर स्कूल की सुविधा अनुसार चलती रही।
- परिजनों द्वारा दिए गए वीडियो और साक्ष्यों को पुलिस ने तत्काल रजिस्टर नहीं किया।
- CCTV, एंटी-बुलिंग रिपोर्ट और स्टाफ की ड्यूटी चार्ट पर पुलिस ने सख्ती नहीं दिखाई।
- स्कूल प्रशासन को पूछताछ से पहले तैयारी का पर्याप्त समय दिया गया।
- पुलिस प्रेस को समय-समय पर विरोधाभासी बयान देती रही।
अभिभावक संघ का कहना है कि यह लापरवाही केवल एक केस की नहीं — बल्कि निजी स्कूलों पर सख्ती के अभाव का परिणाम है।
“अमायरा मदद मांगती रही “
“हमारी बच्ची अंतिम 30 मिनट में पाँच बार मदद मांगती रही। उसके बाद भी जिस तरह पुलिस ने काम किया, वह भी उतना ही पीड़ादायक है। यह जांच नहीं, औपचारिकता है।”
— अमायरा के पिता, विजय कुमार मीणा
केस की जांच उच्च-स्तरीय SIT को दी जाए
संयुक्त अभिभावक संघ व परिवार ने तीन प्रमुख मांगें रखी हैं:
- राज्यस्तरीय SIT या CBI जैसी स्वतंत्र एजेंसी जांच करें।
- पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए जिन्होंने सबूत बचाने में लापरवाही की।
- जांच समिति में अभिभावक प्रतिनिधि अनिवार्य रूप से शामिल हो।
उनका कहना है कि “बिना स्वतंत्र जांच के, इस केस में न्याय संभव नहीं है।”
पुलिस की भूमिका पर भी उठेगी आवाज़
22 नवंबर को शहीद स्मारक पर होने वाले “अमायरा को न्याय” प्रदर्शन में हजारों अभिभावकों के शामिल होने की संभावना है। इस बार प्रदर्शन का फोकस केवल स्कूल नहीं — बल्कि पुलिस की ढिलाई और जांच की खराब गुणवत्ता पर भी रहेगा।
“यदि पुलिस समय पर कार्रवाई करती तो आधे सच उसी दिन सामने आ जाते। देरी से जांच पूरे सिस्टम को सवालों के घेरे में खड़ा कर रही है।”
— संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष
क्या यह केस राजस्थान में स्कूल सुरक्षा नियमों का टर्निंग पॉइंट बनेगा?
अमायरा की मौत अब सिर्फ एक स्कूल घटना नहीं रही। यह राजस्थान में पुलिस-जांच प्रणाली, निजी स्कूलों पर नियंत्रण और बच्चों की सुरक्षा के पूरे ढांचे पर सवाल उठाती है। यदि इस केस में पारदर्शी, समयबद्ध और निष्पक्ष जांच नहीं हुई — तो यह संदेश पूरे राज्य के अभिभावकों तक जाएगा कि उनकी शिकायतें गंभीरता से नहीं ली जातीं।
